November 24, 2024

सारनाथ के संदर्भ में ऐतिहासिक जानकारी पुरातत्त्वविदों को उस समय हुई जब काशी नरेश चेत सिंह के दीवान जगत सिंह ने धर्मराजिका स्तूप को अज्ञानवश ही खुदवा डाला। इस घटना से जनता का आकर्षण सारनाथ की ओर बढ़ा।

वर्ष १८१५…

इस क्षेत्र का सर्वप्रथम सीमित उत्खनन कर्नल कैकेंजी ने वर्ष १८१५ ई. में करवाया लेकिन उनको कोई महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हुई। इस उत्खनन से प्राप्त सारी सामग्री अब कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में सुरक्षित है।

वर्ष १८३५-३६…

कैकेंजी के उत्खनन के २० वर्ष पश्चात् १८३५-३६ में कनिंघम ने सारनाथ का विस्तृत उत्खनन करवाया। उत्खनन में उन्होंने मुख्य रूप से धमेख स्तूप, चौखंडी स्तूप एवं मध्यकालीन विहारों को खोद निकाला। कनिंघम का धमेख स्तूप से ३ फुट नीचे ६०० ई. का एक अभिलिखित शिलापट्ट मिला। इसके अतिरिक्त यहाँ से बड़ीं संख्या में भवनों में प्रयुक्त पत्थरों के टुकड़े एवं मूर्तियाँ भी मिलीं, जो अब कलकत्ता के भारतीय संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

वर्ष १८५१-५२…

१८५१-५२ ई. में मेजर किटोई ने यहाँ उत्खनन करवाया जिसमें उन्हें धमेख स्तूप के आसपास अनेक स्तूपों एवं दो विहारों के अवशेष मिले, परंतु इस उत्खनन की रिपोर्ट प्रकाशित न हो सकी।

वर्ष १८६५…

किटोई के उपरांत एडवर्ड थामस तथा प्रो॰ फिट्ज एडवर्ड हार्न ने खोज कार्य जारी रखा। उनके द्वारा उत्खनित वस्तुएँ अब भारतीय संग्रहालय कलकत्ता में हैं।

वर्ष १९०४-०५…

इस क्षेत्र का सर्वप्रथम विस्तृत एवं वैज्ञानिक उत्खनन एच.बी. ओरटल ने करवाया। उत्खनन २०० वर्ग फुट क्षेत्र में किया गया। यहाँ से मुख्य मंदिर तथा अशोक स्तंभ के अतिरिक्त बड़ी संख्या में मूर्तियाँ एवं शिलालेख मिले हैं। प्रमुख मूर्तियों में बोधिसत्व की विशाल अभिलिखित मूर्ति, आसनस्थ बुद्ध की मूर्ति, अवलोकितेश्वर, बोधिसत्व, मंजुश्री, नीलकंठ की मूर्तियाँ तथा तारा, वसुंधरा आदि की प्रतिमाएँ भी हैं।

वर्ष १९०७…

पुरातत्त्व विभाग के डायरेक्टर जनरल जान मार्शल ने अपने सहयोगियों स्टेनकोनो और दयाराम साहनी के साथ १९०७ में सारनाथ के उत्तर-दक्षिण क्षेत्रों में उत्खनन किया। उत्खनन से उत्तर क्षेत्र में तीन कुषाण कालीन मठों का पता चला। दक्षिण क्षेत्र से विशेषकर धर्मराजिका स्तूप के आसपास तथा धमेख स्तूप के उत्तर से उन्हें अनेक छोटे-छोटे स्तूपों एवं मंदिरों के अवशेष मिले। इनमें से कुमारदेवी के अभिलेखों से युक्त कुछ मूर्तियाँ विशेष महत्त्व की हैं। उत्खनन का यह कार्य बाद के वर्षों में भी जारी रहा।

वर्ष १९१४-१५…

एच. हारग्रीव्स ने मुख्य मंदिर के पूर्व और पश्चिम में खुदाई करवाई। उत्खनन में मौर्यकाल से लेकर मध्यकाल तक की अनेक वस्तुएँ मिली।

वर्ष १९२७-३२…

इस क्षेत्र का अंतिम उत्खनन दयाराम साहनी के निर्देशन में पांच सत्रों तक चलता रहा। धमेख स्तूप से मुख्य मंदिर तक के संपूर्ण क्षेत्र का उत्खनन किया गया। इस उत्खनन से दयाराम साहनी को एक – १ फुट साढ़े नौ इंच लंबी, २ फुट ७ इंच चौड़ी तथा ३ फुट गहरी एक नाली के अवशेष मिले।

उत्खननों से निम्नलिखित स्मारक प्रकाश में आए हैं…

१. चौखंडी स्तूप,

२. धर्मराजिका स्तूप,

३. मूलगंध कुटी विहार,

४. अशोक स्तंभ,

५. धमेख स्तूप (धर्मचक्र स्तूप),

६. कलाकृतियाँ तथा प्रतिमाएँ

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