April 27, 2024

अशोक के धार्मिक प्रचार से कला को बहुत ही प्रोत्साहन मिला। अपने धर्मलेखों के अंकन के लिए उन्होने ब्राह्मी और खरोष्ठी दो लिपियों का उपयोग किया और संपूर्ण देश में व्यापक रूप से लेखनकला का प्रचार हुआ। धार्मिक स्थापत्य और मूर्तिकला का अभूतपर्वू विकास अशोक के समय में हुआ। परंपरा के अनुसार उन्होने तीन वर्ष के अंतर्गत ८४,००० स्तूपों का निर्माण कराया। इनमें से ऋषिपत्तन (सारनाथ) में उनके द्वारा निर्मित धर्मराजिका स्तूप का भग्नावशेष अब भी द्रष्टव्य हैं।

सारनाथ का स्तंभ

धर्मचक्र प्रवर्तन की घटना का स्मारक था और धर्मसंघ की अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए इसकी स्थापना हुई थी। यह चुनार के बलुआ पत्थर के लगभग ४५ फुट लंबे प्रस्तरखंड का बना हुआ है। धरती में गड़े हुए आधार को छोड़कर इसका दंड गोलाकार है, जो ऊपर की ओर क्रमश: पतला होता जाता है। दंड के ऊपर इसका कंठ और कंठ के ऊपर शीर्ष है। कंठ के नीचे प्रलंबित दलोंवाला उलटा कमल है। गोलाकार कंठ चक्र से चार भागों में विभक्त है। उनमें क्रमश: हाथी, घोड़ा, सांढ़ तथा सिंह की सजीव प्रतिकृतियाँ उभरी हुई है। कंठ के ऊपर शीर्ष में चार सिंह मूर्तियाँ हैं जो पृष्ठत: एक दूसरी से जुड़ी हुई हैं। इन चारों के बीच में एक छोटा दंड था जो ३२ तिल्लियों वाले धर्मचक्र को धारण करता था, जो महात्मा बुद्ध के ३२ महापुरूष लक्षणों के प्रतीक स्वरूप था | अपने मूर्तन और पालिश की दृष्टि से यह स्तंभ अद्भुत है। इस समय स्तंभ का निचला भाग अपने मूल स्थान में है। शेष संग्रहालय में रखा है। धर्मचक्र के केवल कुछ ही टुकड़े उपलब्ध हुए। चक्ररहित सिंह शीर्ष ही आज भारत गणतंत्र का राज्य चिह्न है।

चारों दिशाओं में गर्जना करते हुए चार शेर…

बौद्ध धर्म में शेर को विश्वगुरु तथागत बुद्ध का पर्याय माना गया है। बुद्ध के पर्यायवाची शब्दों में शाक्यसिंह और नरसिंह भी है, यह हमें पालि गाथाओं में मिलता है। इसी कारण बुद्ध द्वारा उपदेशित धम्मचक्कप्पवत्तन सुत्त को बुद्ध की सिंहगर्जना कहा गया है। बुद्ध ने वर्षावास समाप्ति पर भिक्खुओं को चारों दिशाओं में जाकर लोक कल्याण हेतु बहुजन हिताय बहुजन सुखाय का आदेश इसिपतन (मृगदाव) में दिया था, जो आज सारनाथ के नाम से विश्विविख्यात है। इसलिए यहाँ पर मौर्य साम्राज्य के तीसरे सम्राट व सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य के पौत्र चक्रवर्ती अशोक महान ने चारों दिशाओं में सिंह गर्जना करते हुए शेरों को बनवाया था और इसको भारत गणराज्य द्वारा भारत के राष्ट्रीयचिह्न के रूप में लिया गया है।

उत्खनन…

अशोक स्तंभ, मुख्य मंदिर से पश्चिम की ओर एक अशोककालीन प्रस्तर-स्तंभ है जिसकी ऊँचाई प्रारंभ में १७.५५ मी. यानी ५५ फुट थी। वर्तमान समय में इसकी ऊँचाई सिर्फ २.०३ मीटर यानी ७.९ फुट है। स्तंभ का ऊपरी सिरा अब सारनाथ संग्रहालय में है। नींव में खुदाई करते समय यह पता चला कि इसकी स्थापना ८ फुट X १६ फुट X १८ इंच आकार के बड़े पत्थर के चबूतरे पर हुई थी। इस स्तंभ पर तीन लेख उल्लिखित हैं। पहला लेख अशोक कालीन ब्राह्मी लिपि में है जिसमें सम्राट ने आदेश दिया है कि जो भिछु या भिक्षुणी संघ में फूट डालेंगे और संघ की निंदा करेंगे: उन्हें सफ़ेद कपड़े पहनाकर संघ के बाहर निकाल दिया जाएगा। दूसरा लेख कुषाण-काल का है। तीसरा लेख गुप्त काल का है, जिसमें सम्मितिय शाखा के आचार्यों का उल्लेख किया गया है।

About Author

Leave a Reply