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आज हम एक ऐसे देशभक्त के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिनके बारे में कभी एक कहावत प्रसिद्ध थी कि “रामदास जी गुड़वाले के पास इतना सोना चांदी जवाहरात है, कि उनकी दीवारों से वो गंगाजी का पानी भी रोक सकते हैं” मगर उनकी देशभक्ति ने उन्हें दो पुरस्कार प्रदान किए…

१. १८५७ के इस महान क्रांतिकारी व दानवीर को अंग्रेजों द्वारा फांसी पर चढ़ाने से पूर्व उन पर शिकारी कुत्ते छोड़े गए, जिन्होंने जीवित ही उनके पूरे शरीर को नोच खाया।

२. उनके अपने देशवासियों द्वारा ही उनके महान कृत्य को भुला कर उनके नाम को सदा सदा के लिए गुमनामी के अंधेरे काल कोठरी में जब्त कर दिया गया। जहां वो मरने के बाद भी सजा भुगत रहे हैं।

परिचय…

जगत सेठ रामदास जी गुडवाला दिल्ली के अरबपति सेठ और बेंकर थे और अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के गहरे मित्र भी थे। इनका जन्म दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार में हुआ था। इनके परिवार ने दिल्ली में पहली कपड़े की मिल की स्थापना की थी। वैसे तो दोस्तों जगत सेठ रामदास जी गुडवाला की फॅमिली मूल रूप से राजस्थान के नागौर में एक मारवाड़ी अग्रवाल फॅमिली थी, परंतु सेठ रामजीदास का जन्म दिल्ली में जगत सेठ माणिकचंद जी के यहां हुआ था। सेठ माणिकचंद १७वीं शताब्दी में राजस्थान के नागौर जिले के एक मारवाड़ी परिवार में हीरानंद साहू के घर जन्में थे। माणिकचंद के पिताजी हीरानंद जी बेहतर व्यवसाय की खोज में बिहार रवाना हो गए। फिर पटना से होते हुए, बंगाल और दिल्ली और उत्तर भारत के प्रमुख बड़े शहरो में इनका व्यवसाय चलता था।

इन जगत सेठो ने समय समय पर अंग्रजों और मुगलों को भी उधार में पैसा दिया था। उनकी अमीरी का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि उस समय की ब्रिटिश की सभी बैंकों से ज्यादा पैसा जगत सेठों के पास था।

१८५७ की क्रांति…

वर्ष १८५७ में मेरठ से आरम्भ होकर क्रांति की चिंगारी जब दिल्ली पहुंचा, तब दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेनाओं ने दिल्ली में डेरा डाल दिया। उनके भोजन, वेतन की समस्या पैदा हो गई। जैसा कि आप जानते हैं कि रामजीदास गुड़वाले बादशाह के गहरे मित्र थे। रामदास जी को बादशाह की यह अवस्था देखी नहीं गई। उन्होंने भारतीय सिपाहियों को आजादी का संदेश भेजा। यह भी कहा जाता है कि क्रांतिकारियों द्वारा मेरठ में दिल्ली में क्रांति का झंडा खड़ा करने में गुड़ वाला का प्रमुख हाथ था।

सहयोग…

जगत सेठ ने करोड़ों रुपए सहयोग के रूप में एवं अरबों रुपए खर्च के रूप में मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को दिए। इसके अतिरिक्त फौज को रसद पहुंचाने के लिए उन्होंने अपना भंडार हमेशा खुला रखा था। अंग्रेज अधिकारी जगत सेठ के प्रभाव को भली भांति जानते थे। कुछ अंग्रेज अधिकारी गुड़वाला सेठ से धन मांगने के लिए उनके घर पहुंचे। अंग्रेज अधिकारी ने सेठ जी से निवेदन किया कि सेठ जी आप तो महादानी हैं। युद्ध की स्थिति के कारण हम पर आर्थिक तंगी आन पड़ी है। आप हमें आर्थिक सहायता करें तो ठीक रहेगा। आप का दिया हुआ धन दिल्ली वासियों के ऊपर ही खर्च किया जाएगा।

जगत सेठ जी अंग्रेजों की चालाकी समझ गए। उन्होंने अंग्रेजो से कहा कि आप लोग, मेरे देश में अशांति के लिए जिम्मेदार हैं, मैं क्रूर आक्रांताओं को धन नहीं दे सकता। आप लोगों ने नगरों को श्मशान बना डाला है। इस तरह के बुरे कार्य करने वालों को देने के लिए मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। इस प्रकार अंग्रेजों ने कई बार सेठ जी से सहायता प्राप्त करने का प्रयास किया, परंतु सेठ जी ने उन्हें किसी भी प्रकार की सहायता नहीं दी।

सेठ जी समझ गए कि अब उन्हें क्या करना है, उन्होंने विचार किया, “मातृभूमि की रक्षा होगी
तो धन फिर कमा लिया जायेगा” सेठ जी ने अब पूरा धन आजादी के परवानों पर लूटा देना चाहते थे, उन्होंने सिर्फ धन ही नहीं दिया बल्कि सैनिकों को सत्तू, आटा आदि अनाज तथा बैलों, ऊँटों व घोड़ों के लिए चारे की व्यवस्था तक की।

जिस सेठ ने अभी तक सिर्फ और सिर्फ व्यापार ही किया था, सेना व खुफिया विभाग के संगठन का कार्य भी प्रारंभ कर दिया। उनके संगठन की शक्ति को देखकर अंग्रेज़ सेनापति भी हैरान हो गए। सारे उत्तर भारत में उन्होंने जासूसों का जाल बिछा दिया, अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क किया। उन्होंने भीतर ही भीतर एक शक्तिशाली सेना व गुप्तचर संगठन का भी निर्माण किया। देश के कोने कोने में गुप्तचर भेजे व छोटे से छोटे मनसबदार, राजाओं से प्रार्थना की कि इस संकट काल में सभी संगठित हों और देश को स्वतंत्र करवाएं।

अंग्रेजी सरकार में चिंता…

रामदास जी द्वारा की जा रही इन क्रांतिकारी गतिविधयिओं से अंग्रेजी सरकार व अधिकारी परेशान होने लगे, मगर कुछ ऐसे कारण बने कि दिल्ली पर अंग्रेजों का पुनः कब्जा होने लगा। एक दिन सेठ जी ने चाँदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियाँ रखवा दीं, अंग्रेज सेना उनसे अपनी प्यास बुझाती और वहीं लेट जाती। अंग्रेजों को अब समझ आ गया कि भारत पर अगर शासन करना है, तो रामदास जी का अंत बेहद जरूरी है। उन्होंने एक जाल बिछाया और जगत सेठ रामदास जी गुड़वाले को धोखे से पकड़ लिया।

और अंत में…

पहले उन्हें रस्सियों से एक खंबे में बाँधा गया, फिर उन पर शिकारी कुत्ते छुड़वाए गए। उसके बाद उन्हें उसी अधमरी अवस्था में दिल्ली के चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया गया। उन्हें जिस तरह से मारा गया, वो इतिहास में क्रूरता की एक मिसाल है।

इतिहास…

सुप्रसिद्ध इतिहासकार ताराचंद ने अपनी पुस्तक ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट’ में लिखा है, “सेठ रामदास गुड़वाला उत्तर भारत के सबसे धनी सेठ थे।” अंग्रेजों के विचार से, उनके पास असंख्य मोती, हीरे व जवाहरात व अकूत संपत्ति थी।

हमारा आधुनिक भामाशाह देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गया। और इतिहास में अपना नाम अमर कर गया, मगर वो इतिहास कहां है, उसका वो पन्ना कहां है, जिसको हम पढ़ सकें, पढ़ कर उन पर गर्व कर सकें, उन्हें नमन कर सकें।

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