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UBI Contest १०३
हिन्दी
श्रेणी कविता
सूरजमुखी

शीर्षक : सूरजमुखी का सूरज प्रेम

सूरज सरीखा रूप लिए
वह डाली पर लहराया है,
चेहरे पर उसके वही तेज है, जो
सूरज मेरे उपवन में उतर आया है।

फैलाकर अपनी अनोखी आभा
बहकाता सबके अंतर्मन को,
रंग-बिरंगी फूलों में भी रहकर
देखता घूम घूम कर उपवन को।

नाम है उसका सूरजमुखी
सूरज से बड़ा पुराना नाता है,
सूरज के आने से हंसता
जाते ही वो तड़प जाता है।

सूरज से है उसकी प्रेम निराली
नहीं चेतना कभी बदलने वाली,
पूरे दिन सूरज को चलते देखे वो
बेचैनी उसकी हैरान करने वाली।

छुईमुई का फूल नहीं वो
जो छूते ही कुम्हला जाए,
कड़ी धूप की परीक्षा में वो
खड़े खड़े डाली पर मुस्काए।

टूट जाये डाली से फिर भी
ना शोक मनाता जीवन का,
दे अपना सर्वस्य समर्पण
आनंद मनाता जीवन का।

(मौलिक एवं स्वरचित)

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’
बक्सर (बिहार) 

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