November 21, 2024

बिरसा मुंडा का जन्म छोटा नागपुर पठार यानि झारखण्ड के राँची के खूंटी जिला अंतर्गत उलीहातू गाँव के मुंडा जनजातीय समूह के एक गरीब परिवार में सुगना पुर्ती और करमी पुर्ती के यहां १५ नवम्बर, १८७५ को हुआ था। बिरसा की प्रारम्भिक पढाई साल्गा गाँव से शुरू हुई। उसके बाद वे चाईबासा जीईएलचार्च (गोस्नर एवंजिलकल लुथार) विधालय से पढ़ाई करने गए। लेकिन इनका मन हमेशा अपने समाज के प्रति ब्रिटिश शासकों द्वारा की गयी अत्याचारों की ओर झुका रहता। इसलिए उन्होंने मुंडा लोगों को अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए एकत्रित किया। वर्ष १८९४ में भयंकर अकाल और महामारी फैली हुई थी। बिरसा ने पूरे मनोयोग से अपने लोगों की सेवा की।

मुंडा विद्रोह का नेतृत्‍व…

१ अक्टूबर, १८९४ की बात है बिरसा ने नौजवान नेता के रूप में सभी मुंडाओं को एकत्र कर अंग्रेजो से लगान (कर) माफी के लिये आन्दोलन किया। इसलिए उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और हजारीबाग केन्द्रीय कारागार में दो साल के कारावास की सजा दी गयी। लेकिन बिरसा और उनके शिष्यों ने क्षेत्र की अकाल पीड़ित जनता की सहायता करने की ठान रखी थी इसलिए उन्हें उनके जीवन काल में ही महापुरुष का दर्जा दे दिया गया। उन्हें उस इलाके के लोग “धरती बाबा” के नाम से पुकारने और पूजा करने लगे थे। यह उनका प्रभाव ही था कि पूरे इलाके के मुंडाओं में संगठित होने की और अंग्रेजी सरकार का विरोध करने की चेतना जागी।

विद्रोह में भागीदारी और अन्त…

१८९७ से १९०० के मध्य मुंडाओं और अंग्रेज सिपाहियों के बीच युद्ध होते रहे और बिरसा और उसके चाहने वाले लोगों ने अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था। अगस्त १८९७ में बिरसा और उसके चार सौ सिपाहियों ने तीर कमानों से लैस होकर खूँटी थाने पर धावा बोला। १८९८ में तांगा नदी के किनारे मुंडाओं की भिड़ंत अंग्रेज सेनाओं से हुई जिसमें अंग्रेजी सेना हार कर पीछे लौट गई लेकिन बाद में बड़ी तादाद में लौट कर उस इलाके के बहुत से आदिवासी नेताओं को गिरफ़्तार कर ले गए।

जनवरी १९०० में डोम्बरी पहाड़ पर एक और संघर्ष हुआ था जिसमें बहुत सी औरतें व बच्चे मारे गये थे। उस जगह बिरसा अपनी जनसभा को सम्बोधित कर रहे थे। बाद में बिरसा के कुछ शिष्यों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। अन्त में स्वयं बिरसा भी ३ फरवरी, १९०० को चक्रधरपुर में गिरफ़्तार कर लिये गये और फिर ९ जून, १९०० को उन्हें आंग्रेजों ने जहर देकर मर दिया। आज भी बिहार, उड़ीसा, झारखंड, छत्तीसगढ और पश्चिम बंगाल के आदिवासी इलाकों में बिरसा मुण्डा को भगवान की तरह पूजा जाता है।

बिरसा मुण्डा की समाधि राँची में कोकर के निकट डिस्टिलरी पुल के पास स्थित है। वहीं उनका स्टेच्यू भी लगा है। उनकी स्मृति में रांची में बिरसा मुण्डा केन्द्रीय कारागार तथा बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय विमानक्षेत्र भी है।

About Author

Leave a Reply