November 24, 2024

रामानंद सागर द्वारा निर्देशित एवम निर्मित रामायण के गीत ने इस पौराणिक धारावाहिक को हिट कराने में महती भूमिका निभाई है। जिसकी एक धुन आज भी हमारे कानों में पड़ जाए तो कदम स्वयं ही ठहर जाते हैं। यह तो सर्व विदित है कि रामायण का अद्भुत संगीत श्री रवीन्द्र जैन जी ने दिया था तथा इसके कुछ गीतों और भजनों को लिखा भी उन्होंने था। इसके साथ ही उन्होंने रामायण के कई बेहतरीन गानों को अपनी आवाज भी दी है, जैसे…

राम भक्त ले चला रे,
राम की निशानी।
शीश पर खड़ाऊँ,
अँखिओं में पानी॥
राम भक्त ले चला रे, राम की निशानी

शीश खड़ाऊ ले चला ऐसे,
राम सिया जी संग हो जैसे।
अब इनकी छाँव में रहेगी राजधानी,
राम भक्त ले चला रे राम की निशानी॥

परिचय…

प्रख्यात संगीतकार, गीतकार तथा गायक श्री रवीन्द्र जैन जी का जन्म २८ फरवरी, १९४४ को उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ शहर के रहने वाले पंडित इन्द्रमणि जैन माता किरणदेवी जैन के यहां हुआ था। अपने सात भाइयों तथा एक बहन में रवीन्द्र जैन का क्रम चौथा था। मगर बदकिस्मती से उनकी आँखें जन्म से बंद थीं, जिसे पिता के मित्र डॉ. मोहनलाल ने सर्जरी से खोला। साथ ही यह भी कहा कि बालक की आँखों में रोशनी तो है, जो धीरे-धीरे बढ़ सकती है, लेकिन इसे कोई काम ऐसा मत करने देना, जिससे आँखों पर जोर पड़े।

अँखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे
तुम दूर नज़र आए तुम बड़ी दूर नज़र आए
बंद करके झरोखों को ज़रा बैठी जो सोचने
मन में तुम्हीं मुस्काए मन में तुम्हीं मुस्काए
अँखियों के झरोखों से…

एक भजन, एक रुपया…

रवीन्द्र जैन के पिता ने डॉक्टर की नसीहत को ध्यान में रखकर संगीत की राह चुनी, जिसमें आँखों का कम उपयोग होता है। रवीन्द्र ने अपने पिता तथा भाई की आज्ञा शिरोधार्य कर मन की आँखों से सब कुछ जानने-समझने की सफल कोशिश की। बड़े भाई से आग्रह कर अनेक उपन्यास सुने। कविताओं के भावार्थ समझे। धार्मिक-ग्रंथों तथा इतिहास-पुरुषों की जीवनियों से जीवन का मर्म समझा। वे बचपन से इतने कुशाग्र बुद्धि के थे कि एक बार सुनी गई बात को कंठस्थ कर लेते, जो हमेशा उन्हें याद रहती। परिवार के धर्म, दर्शन और अध्यात्ममय माहौल में उनका बचपन बीता। वे प्रतिदिन मंदिर जाते और वहाँ एक भजन गाकर सुनाना उनकी दिनचर्या में शामिल था। बदले में पिताजी एक भजन गाने पर एक रुपया इनाम भी दिया करते थे।

तुम से लागी लगन, ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा।
निशदिन तुमको जपूँ, पर से नेहा तजूँ, जीवन सारा,

शरारतें…

रवीन्द्र जैन भले ही दृष्टिहीन रहे हों, मगर उन्होंने बचपन में खूब शरारतें कीं। परिवार का नियम था कि सूरज ढलने से पहले घर में कदम रखो और भोजन करो। रवीन्द्र ने इस नियम का कभी पालन नहीं किया। रोज देर रात को घर आते। पिताजी के डंडे से माँ बचाती। उनके कमरे में पलंग के नीचे खाना छिपाकर रख देतीं ताकि बालक भूखा न रहे। अपनी दोस्त मंडली के साथ रवीन्द्र गाने-बजाने की टोली बनाकर अलीगढ़ के रेलवे स्टेशन के आसपास मँडराया करते थे। उनके दोस्त के पास टिन का छोटा डिब्बा था, जिस पर थाप लगाकर वे गाते और हर आने-जाने वाले का मनोरंजन करते। एक दिन न जाने क्या सूझी कि डिब्बे को सीधा कर दिया। उसका खुला मुँह देख श्रोता उसमें पैसे डालने लगे। चिल्लर से डिब्बा भर गया। घर आकर उन्होंने माँ के चरणों में चिल्लर उड़ेल दी। पिताजी ने यह देखा तो गुस्से से लाल-पीले हो गए और सारा पैसा देने वालों को लौटाने का आदेश दिया। अब परेशानी यह आई कि अजनबी लोगों को खोजकर पैसा कैसे वापस किया जाए? दोस्तों ने योजना बनाई कि चाट की दुकान पर जाकर चाट-पकौड़ी जमकर खाई जाए और मजा लिया जाए।

गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल
ओ बन्धू रे… हंसते हंसाते बीते हर घड़ी हर पल
गीत गाता चल ओ साथी गुनगुनाता चल

व्यावसायिक शुरुआत…

रवीन्द्र जैन ने कलकत्ता तथा वहाँ के ‘रवीन्द्र संगीत’ के बारे में काफ़ी सुन रखा था। ताऊजी के बेटे पद्म भाई ने वहाँ चलने का प्रस्ताव दिया, तो फौरन राजी हो गए। पिताजी ने पचहत्तर रुपए जेब खर्च के लिए दिए। माँ ने कपड़े की पोटली में चावल-दाल बाँध दिए। कानपुर स्टेशन पर भाई के साथ नीचे उतरे, तो ट्रेन चल पड़ी। पद्म भाई तो चढ़ गए। रवीन्द्र ने भागने की कोशिश की। डिब्बे से निकले एक हाथ ने उन्हें अंदर खींच लिया। उस अजनबी ने कहा, “जब तक भाई नहीं मिले, हमारे साथ रहना।” फ़िल्म निर्माता राधेश्याम झुनझुनवाला के जरिए रवीन्द्र को संगीत सिखाने की एक ट्‌यूशन मिली। मेहनताने में चाय के साथ नमकीन समोसा। पहली नौकरी बालिका विद्या भवन में ४० रुपए महीने पर लगी। इसी शहर में उनकी मुलाकात पण्डित जसराज तथा पण्डित मणिरत्नम् से हुई। नई गायिका हेमलता से उनका परिचय हुआ। वे मिलकर बांग्ला तथा अन्य भाषाओं में धुनों की रचना करने लगे। हेमलता से नजदीकियों के चलते उन्हें ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी से ऑफर मिलने लगे। एक पंजाबी फ़िल्म में हारमोनियम बजाने का मौका मिला। सार्वजनिक मंच पर प्रस्तुति के १५१ रुपए तक मिलने लगे। इसी सिलसिले में वे हरिभाई जरीवाला (संजीव कुमार) के संपर्क में आए। कलकत्ता का यह पंछी उड़कर मुंबई आ गया।

ले तो आये हो हमें सपनों की गाँव में
प्यार की छाँव में बिठाये रखना
सजना ओ सजना …

मुम्बई आगमन…

वर्ष १९६८ में राधेश्याम झुनझुनवाला के साथ रवीन्द्र जैन मुंबई आए तो पहली मुलाकात पार्श्वगायक मुकेश से हुई। रामरिख मनहर ने कुछ महफिलों में गाने के अवसर जुटाए। नासिक के पास देवलाली में फ़िल्म ‘पारस’ की शूटिंग चल रही थी। संजीव कुमार ने वहाँ बुलाकार निर्माता एन.एन. सिप्पी से मिलवाया। रवीन्द्र ने अपने खजाने से कई अनमोल गीत तथा धुनें एक के बाद एक सुनाईं। श्रोताओं में शत्रुघ्न सिन्हा, फ़रीदा जलाल और नारी सिप्पी भी थे। उनका पहला फ़िल्मी गीत १४ जनवरी, १९७२ को मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में रिकॉर्ड हुआ।

यह भीगी फ़िज़ाएं इन्हीं में खो जाएं
ज़माना हमे ढूंढे हम किसी को न मिले
तमन्नाओ के फूल तन्हाई में खिले
यह भीगी फ़िज़ाएं इन्ही में खो जाएं
ज़माना हमे ढूंढे हम किसी को न मिले

अपनी बात…

नब्बे के दशक में जब हिन्दी सिनेमा के नये गीतकार-संगीतकारों के समीकरण में काफी उलटफेर हुए, रवीन्द्र ने अपने को पीछे करते हुए संगीत सिखाने की अकादमी के प्रयत्न शुरू किए। रवीन्द्र जैन मध्यप्रदेश शासन के सहयोग से यह अकादमी स्थापित करना चाहते थे। संगीत के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। वर्ष १९८५ में प्रदर्शित राजकपूर की फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’ के लिये रवीन्द्र जैन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये।

एक राधा एक मीरा दोनों
ने श्याम को चाहा
अन्तर क्या दोनों की चाह में बोलो
इक प्रेम दीवानी इक दरस दीवानी

पुरस्कार एवं सम्मान…

१. वर्ष २०१५ में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
२. वर्ष १९८५ में फ़िल्म राम तेरी गंगा मैली के लिए फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार भी मिला।

इक दुखियारी कहे
बात ये रोते रोते
राम तेरी गंगा मैली हो गई
पापियों के पाप धोते धोते
हो ओ… राम तेरी गंगा मैली हो गई
पापियों के पाप धोते धोते

सफलता प्राप्ति…

रामरिख मनहर के जरिये ‘राजश्री प्रोडक्शन’ के ताराचंद बड़जात्या से मुलाकात रवीन्द्र जैन के फ़िल्म करियर को सँवार गई। अमिताभ बच्चन, नूतन अभिनीत ‘सौदागर’ में गानों की गुंजाइश नहीं थी। उसके बावजूद रवीन्द्र ने गुड़ बेचने वाले सौदागर के लिए मीठी धुनें बनाईं, जो यादगार हो गईं। यहीं से रवीन्द्र और राजश्री का सरगम का कारवाँ आगे बढ़ता गया। ‘तपस्या’, ‘चितचोर’, ‘सलाखें’, ‘फ़कीरा’ के गाने लोकप्रिय हुए और मुंबइया संगीतकारों में रवीन्द्र जैन का नाम स्थापित हो गया। ‘दीवानगी’ के समय सचिन देव बर्मन बीमार हो गए तो यह फ़िल्म उन्होंने रवीन्द्र जैन को सौंप दी। एक महफिल में रवीन्द्र जैन-हेमलता गा रहे थे। श्रोताओं में राज कपूर भी थे। ‘एक राधा एक मीरा दोनों ने श्याम को चाहा’ गीत सुनकर राज कपूर झूम उठे, बोले- “यह गीत किसी को दिया तो नहीं?” पलटकर रवीन्द्र जैन ने कहा, “राज कपूर को दे दिया है।” बस, यहीं से उनकी एंट्री राज कपूर के शिविर में हो गई। आगे चलकर ‘राम तेरी गंगा मैली’ का संगीत रवीन्द्र जैन ने ही दिया और फ़िल्म तथा संगीत बेहद लोकप्रिय हुए।

सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए
ज़रा उलझी लटें संवार दूं
हर अंग का रंग निखार लून
के सजना है मुझे सजना के लिए
सजना है मुझे सजना के लिए

कुछ लोकप्रिय गीत…

१. ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे (चोर मचाए शोर· १९७३)
२. सजना है मुझे सजना के लिए (सौदागर·१९७३)
३. हर हसीं चीज का मैं तलबगार हूं (सौदागर ·१९७३)
४. गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल ( गीत गाता चल·१९७५)
५. श्याम तेरी बंसी पुकारे राधा नाम (गीत गाता चल·१९७५)
६. जब दीप जले आना (चितचोर·१९७६)
७. ले तो आए हो हमें सपनों के गांव में (दुल्हन वही जो पिया मन भाए ·१९७७)
८. ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए (पति, पत्नी और वो·१९७८)
९. अंखियों के झरोखों से, मैंने जो देखा सांवरे (अंखियों के झरोखों से·१९७८)
१०. कौन दिशा में ले के (नदियां के पार-१९८२)
११. एक राधा एक मीरा (राम तेरी गंगा मैली-१९८५)
१२. सुन सायबा सुन, प्यार की धुन (राम तेरी गंगा मैली-१९८५)
१३. मुझे हक है (विवाह–२००६)
१४. अयोध्या करती है (आह्वान·२०१५)

हिन्दू है तो हिन्दुओ की आन मत जाने दे,
राम लला पे कोई आंच मत आने दे,
कायर विरोधियो को शोर मचाने दे,
जय श्री राम,
कायर विरोधियो को शोर मचाने दे,
लक्ष्य पे रख तू ध्यान ।
अयोध्या करती है आव्हान,
ठाट से कर मंदिर निर्माण ॥
जय श्री राम! जय श्री राम!

और अंत में…

फिल्मों के अलावा रवीन्द्र जैन जी ने टीवी की दुनिया में भी बहुत नाम कमाया। उन्होंने मशहूर पौराणिक सीरियल रामायण का भी संगीत दिया था, साथ कई चौपाईयों में उन्होंने अपनी आवाज भी दी थी। बेशक रवीन्द्र जैन जी आज नहीं हैं, परंतु उनकी कीर्ति शेष है और वह शाहकार धुन भी जिसे आज भी लोग याद करते हैं। संगीतकार रवीन्द्र जैन जी का निधन ७१ वर्ष की आयु में ९ अक्तूबर, २०१५ को मुंबई में हुआ।

हम कथा सुनाते राम शक्ल गुणधाम की
हम कथा सुनाते राम शक्ल गुणधाम की
ये रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

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