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आज हम वर्ष १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिला अंर्तगत मुहम्मदाबाद तहसील मुख्यालय पर तिरंगा फहराने के प्रयास में शहीद हुए डॉ. शिवपूजन राय जी के बारे में जानेंगे। उस कांड में श्री शिवपूजन राय जी के अलावा वंश नारायण राय, वंश नारायण राय द्वितीय, वशिष्ठ नारायण राय, ऋषिकेश राय, राजा राय, नारायण राय और राम बदन उपाध्याय भी शहीद हुए थे। जिन्हें अष्ट शहीद के नाम से सारा संसार जानता है। अब विस्तार पूर्वक…
परिचय…
श्री शिवपूजन राय उर्फ डॉक्टर साहब का जन्म ०१ मार्च, १९१३ को उत्तरप्रदेश के गाजीपुर जिला अंर्तगत मुहम्मदाबाद तहसील के
शेरपुर नामक गांव में हुआ था।
क्रांति…
बात वर्ष १९४२ की है, महात्मा गांधी के पूर्ण स्वराज की मांग पर जोश से लबरेज लोग देश के कोने-कोने से स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ में अपने प्राणों की आहुति देने के लिए आगे आ रहे थे। अंग्रेजों भारत छोड़ों के महायज्ञ में शेरपुर के शिवपूजन राय के नेतृत्व में आठ नौजवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी।
१८ अगस्त, १९४२ को शेरपुर के हजारों लोग डॉ. शिवपूजन राय के नेतृत्व में तहसील भवन पर ध्वज फहराने के लिए पहुंचे। जिले का तत्कालीन कलेक्टर मुनरो उन्हें रोकने के लिए फौज के साथ वहां पहले से ही मौजूद था। जबकि शिवपूजन राय ने अपने दल को पहले से ही कह रखा था कि अहिंसा हमारा अस्त्र है और फायरिंग की स्थिति में भी दल की ओर से कोई हिंसा नहीं होगी। वे लोग तिरंगा फहराने के लिए आगे बढ़े। इस दौरान एक तहसीलदार, जो शिवपूजन जी का सहपाठी भी रह चुका था, ने पदोन्नति के लोभ में आकर बिना किसी चेतावनी के ही भीड़ पर अंधाधुंध गोली चलवा दी। भीड़ में भगदड़ मच गई, परंतु शिवपूजन जी के कदम नहीं रुके। वे हाथ में तिरंगा लिए तहसील भवन की ओर लगातार बढ़ते ही रहे। उसी वक्त उनकी जांघ में एक गोली आकर लगी, इसपर उनका जोश और बढ़ गया, उन्होंने जोर से चिल्ला कर कहा अगर गोली मारना है तो सीने पर मारो। उस बेदर्द अंग्रेजी सरकार के पिट्ठू ने इतना कहते ही सीने पर गोली मार दी। उनके साथ उनके अन्य साथी; वंशनारायण राय, रामबदन उपाध्याय, वशिष्ट राय, रिशेश्वर राय, नारायण राय, वंशनारायण राय द्वितीय और राजनारायण राय भी गोली खा कर गिर पड़े। परंतु सीताराम राय ने झंडे को उसकी ऊंचाई प्रदान कर ही दिया।
अखबार…
उस समय के अखबारों ने मुहम्मदाबाद की इस घटना का उल्लेख विस्तार से किया था। नेशनल हेराल्ड ने वर्ष १९४५ में इस घटना को याद करते हुए ‘गाजीपुर की नादिरशाही’ शीषर्क से लिखा, ‘पूर्वाचल के अन्य जिलों की तरह गाजीपुर को भी वर्ष १९४२ और उसके बाद क्रूर दमन का शिकार बनना पड़ा। शेरपुर गांव में लोगों ने कांग्रेस राज की स्थापना कर दी थी। मगर कुछ ही दिनों बाद हार्डी और उसकी सेना ने मार्च करना शुरू कर दिया और इस प्रशासनिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न कर डाला।’ अखबार आगे लिखता है, २४ अगस्त को गाजीपुर का जिला मजिस्ट्रेट मुनरो ४०० बलूची सैनिकों के साथ शेरपुर गांव पहुंचा। निहत्थे ग्रामीण हथियारबंद सेना का सामना नहीं कर पाए। सेना ने गांव में लूटमार शुरू कर दी। महिलाओं के गहने तक छीने लिए। मुनरो का कत्लेआम मुहम्मदाबाद तहसील की गोलीबारी के बाद ही नहीं रुका। उसने छह दिन बाद गांव में लूट और हत्या का नंगा नाच किया। गांव में ८० घर जलाए गए और ४०० घरों को लूटा गया।’