October 12, 2024

आज एक बार फिर से मराठा साम्राज्य के एक योद्धा के बारे में चर्चा करेंगे। वे पेशवा बालाजी बाजीराव का सबसे बड़ा पुत्र थे और बड़ा होने के कारण रिवाज के मुदाबिक वही मराठा साम्राज्य के अगले उत्तराधिकारी भी थे। वे चाहते तो पेशवा बालाजी बाजीराव के बाद आराम से अगले पेशवा बन सकते थे, परंतु अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण को रोकने के लिये उन्होंने पेशवा से स्वयं को भेजने की गुजारिश की, उन्हें पेशवाई थाली में सजाकर पाने की कोई इच्छा नहीं थी। वह चाहते थे कि अपने सेनापतित्व में इस युद्ध को जीतकर अपनी उपयोगिता को सिद्ध करें। जिस वजह से उन्हें १७ वर्ष की अवस्था में मराठा सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त कर उत्तर भारत भेजा गया। परंतु इस अभियान का अन्त १३ जनवरी, १७६१ को पानीपत के तृतीय युद्ध में विश्वासराव के मारे जाने के बाद हो गया और इतिहास की सबसे बड़ी हार मराठों की हुई।

परिचय…

बालाजी बाजी राव के सबसे बड़े बेटे विश्वासराव का जन्म २२ जुलाई, १७४२ को पुणे के पास सुपे में यानी शाहजी की जागीर में हुआ था। उन्हें बचपन से ही प्रशासनिक मामलों में प्रशिक्षित किया गया था और ८ वर्ष की अल्प आयु से ही सैन्य प्रशिक्षण से अवगत कराया जाने लगा। क्योंकि वह बिल्कुल अपने दादा पेशवा बाजीराव के छोटे स्वरूप की तरह दिख रहा था। प्रसिद्ध इतिहासकार जीएस सरदेसाई लिखते हैं कि विश्वराव की तुलना में पेशवा परिवार में कोई भी अधिक सुंदर नहीं था। पानीपत बखर के लेखकों में से एक रघुनाथ यादव ने कहा था, “पुरुषत्व विश्वास आस्था” (“सभी पुरुषों के बीच सबसे सुंदर।” विश्वासराव का विवाह २ मई, १७५० को लक्ष्मीबाई से हुआ था, जो हरि बालकृष्ण दीक्षित-पटवर्धन की बेटी थीं।

प्रशिक्षण…

श्रीमंत विश्वासराव ने ८ वर्ष की आयु से ही प्रशासन और युद्ध में प्रशिक्षण प्राप्त किए थे। उनकी विशेषता तलवार और धनुर-विद्या में थी। विश्वासराव की दिनचर्या में कसरत करना सदैव से रहा।

पानीपत युद्ध तृतीय…

जैसा कि हमने ऊपर ही कहा है, अहमदशाह अब्दाली के आक्रमण को रोकने के लिये विश्वासराव ने पेशवा से स्वयं को भेजने की गुजारिश की। वह चाहते थे कि वे अपने सेनापतित्व में इस युद्ध को जीतकर अपनी उपयोगिता को सिद्ध करें। जिस वजह से उन्हें १७ वर्ष की अवस्था में मराठा सेना का प्रधान सेनापति नियुक्त कर उत्तर भारत भेजा गया। जबकि सच्चाई यह है कि १४ जनवरी, १७६१ को इस युद्ध में मराठा सेना का प्रतिनिधित्व सदाशिवराव भाऊ ने किया, विश्वासराव नाममात्र के सेनापति थे। यूरोपीय तकनीक पर आधारित मराठों की पैदल सेना एवं तोपखाने की टुकड़ी की कमान इब्राहिम ख़ाँ गार्दी के हाथों में थी। प्रारम्भिक सफलता के अतिरिक्त युद्ध का समस्त परिणाम मराठों के लिए भयानक रहा। मल्हारराव होल्कर युद्ध के बीच में ही भाग निकला और मराठा फ़ौज पूरी तरह से उखड़ गयी। विश्वासराव एवं सदाशिवराव भाऊ के साथ अनेक महत्त्वपूर्ण मराठे सैनिक इस युद्ध में मारे गये। इस बारे में इतिहासकार ‘जे.एन. सरकार’ ने लिखा है, ‘महाराष्ट्र में सम्भवतः ही कोई ऐसा परिवार होगा, जिसने कोई न कोई सगा सम्बन्धी न खोया हो, तथा कुछ परिवारों का तो विनाश ही हो गया।’

विश्लेषण…

पानीपत के इस युद्ध ने यह निर्णय नहीं किया कि भारत पर कौन राज्य करेगा अपितु यह तय कर दिया कि भारत पर कौन शासन नहीं करेगा। मराठों की पराजय के बाद ब्रिटिश सत्ता के उदय का रास्ता क़रीब-क़रीब साफ़ हो गया। अप्रत्यक्ष रूप से सिक्खों को भी मराठों की पराजय से फ़ायदा हुआ। इस युद्ध ने मुग़ल सम्राट को लगभग निर्जीव सा कर दिया, जैसा कि बाद के कुछ वर्ष सिद्ध करते हैं। पानीपत के युद्ध में विश्वासराव की मृत्यु के सदमें को न सह पाने के कारण बालाजी बाजीराव की कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई। पानीपत के तृतीय युद्ध में मराठों के पराजय की सूचना बालाजी बाजीराव को एक व्यापारी द्वारा कूट सन्देश के रूप में पहुँचायी गयी थी, जिसमें कहा गया कि, ‘दो माती विलीन हो गये, बाइस सोने की मुहरें लुप्त हो गईं और चांदी तथा तांबे की तो पूरी गणना ही नहीं की जा सकती।’

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