आज हम आपको भारत के एक और प्रमुख क्रांतिकारी से भेंट करवाने वाले हैं, जिन्होंने ‘काकोरी काण्ड’ में बहुत ही महती भूमिका को निभाया था, तथा जिसके अंतर्गत उन्हें दस वर्ष के कारावास की सजा मिली थी। रामकृष्ण खत्री नाम था उनका, उन्होंने ‘हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ’ का विस्तार मध्य भारत और महाराष्ट्र में किया था। अब विस्तार से…
परिचय…
रामकृष्ण खत्री का जन्म ३ मार्च, १९०२ को महाराष्ट्र के ज़िला बुलढाना बरार अंतर्गत चिखली नामक गाँव में हुआ था। उनके पिताजी का नाम शिवलाल चोपड़ा तथा माताजी कृष्णाबाई थीं। अपने छात्र जीवन में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्याख्यान से प्रभावित होकर रामकृष्ण खत्री ने साधु समाज को संगठित करने का संकल्प किया और ‘उदासीनमण्डल’ के नाम से एक संस्था बना ली। इस संस्था में उन्हें महन्त गोविन्द प्रकाश के नाम से लोग जानते थे। रामकृष्ण खत्री के पाँच पुत्र थे। उनके पुत्रों के नाम- प्रताप, अरुण, उदय, स्वप्न और आलोक थे। लखनऊ में कैसरबाग की मशहूर मेंहदी बिल्डिंग के दो नम्बर मकान में अपने तीसरे पुत्र उदय खत्री के साथ उन्होंने अपने जीवन की अन्तिम बेला तक यानी १८ अक्टूबर, १९९६ तक निवास किया था।
क्रांतिकारी गतिविधियाँ…
क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आकर उन्होंने स्वेच्छा से ‘हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन’ के संगठन का दायित्व स्वीकार किया। मराठी भाषा के अच्छे जानकार होने के नाते राम प्रसाद बिस्मिल ने उन्हें उत्तरप्रदेश से हटाकर मध्यप्रदेश भेज दिया था। व्यवस्था के अनुसार उन्हें संघ का विस्तारक बनाया गया था। ‘काकोरी काण्ड’ के पश्चात् जब पूरे हिन्दुस्तान से गिरफ़्तारियाँ हुईं तो रामकृष्ण खत्री को पूना में पुलिस ने गिरफ़्तार किया और लखनऊ की जेल में लाकर अन्य क्रान्तिकारियों के साथ उन पर भी मुकदमा चलाया। तमाम साक्ष्यों के आधार पर उन पर मध्य भारत और महाराष्ट्र में हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के विस्तार का आरोप उन पर सिद्ध हुआ और उन्हें दस वर्ष की सजा हुई।
महत्त्वपूर्ण योगदान…
जब रामकृष्ण खत्री सजा काटकर जेल से छूटे तो पहले राजकुमार सिन्हा के घर का प्रबन्ध करने में जुट गये, फिर योगेश चन्द्र चटर्जी की रिहाई के लिये प्रयास किया। उसके बाद सभी राजनीतिक कैदियों को जेल से छुड़ाने के लिये आन्दोलन किया। काकोरी स्थित ‘काकोरी शहीद स्मारक’ रामकृष्ण खत्री और प्रेमकृष्ण खन्ना के संयुक्त प्रयासों से ही बन सका था। वर्ष १९७७ में १७, १८, १९ दिसम्बर को लखनऊ में ‘काकोरी शहीद अर्द्धशताब्दी समारोह’, फिर वर्ष १९८१ में २७ और २८ फ़रवरी को इलाहाबाद में ‘शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद बलिदान अर्द्धशताब्दी समारोह’ तथा वर्ष २९८१ में ही २२ और २३ मार्च को नई दिल्ली में शहीद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु के बलिदान के अर्द्धशताब्दी समारोह में रामकृष्ण खत्री की उल्लेखनीय भूमिका रही।
लेखन…
रामकृष्ण खत्री ने एक पुस्तक भी लिखी और एक ग्रन्थ का प्रकाशन किया। उनकी लिखी पुस्तक ‘शहीदों की छाया में’ विश्वभारती प्रकाशन, नागपुर से वर्ष १९८३ में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का विमोचन १० सितम्बर, १९८४ को इंदिरा गाँधी ने किया था। उनके द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘काकोरी शहीद स्मृति’ का विमोचन वर्ष १९७८ में नीलम संजीव रेड्डी ने नई दिल्ली में किया था।