November 22, 2024

शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक सुप्रसिद्ध वाद्य यंत्र है संतूर, जिसे प्राचीन भारतीय भाषा में ‘शततंत्री वीणा’ कहा जाता है। शततंत्री वीणा यानी सौ तारों वाली वीणा। जो कालांतर में फ़ारसी भाषा के सहयोग से संतूर नाम से प्रसिद्ध हुआ। अगर उत्पत्ति की बात की जाए तो, विद्वानों के अनुसार संतूर की उत्पत्ती लगभग १८०० वर्षों से भी पूर्व ईरान में मानी जाती है, जो बाद में एशिया के कई अन्य देशों में प्रचलित हुई। जबकि सच्चाई यह है कि संतूर मां सरस्वती की वीणा का ही बदला हुआ स्वरूप है, जो अलग अलग समय में अलग अलग सभ्यताओं और संस्कृति के अनुसार अपनी रूप बदलती रही है।

संतूर लकड़ी का एक चतुर्भुजाकार बक्सानुमा यंत्र है जिसके ऊपर दो-दो मेरु की पंद्रह पंक्तियाँ होती हैं। एक सुर से मिलाये गये धातु के चार तार एक जोड़ी मेरु के ऊपर लगे होते हैं। इस प्रकार तारों की कुल संख्या ६० होती है। आगे से मुड़ी हुई डंडियों से इसे बजाया जाता है। संतूर मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य यंत्र है और इसे सूफ़ी संगीत में इस्तेमाल किया जाता था।

अगर संतूर की बात आ गई तो स्वर्गीय श्री शिव कुमार शर्मा जी के बारे में बात ना की जाए तो यह प्रसंग अधूरा रह जायेगा। क्योंकि श्री शर्मा भारत के प्रसिद्ध संतूर वादक थे, जिन्होंने संतूर को भारतीय शास्त्रीय संगीत में एक उचित और सम्मानित स्थान प्रदान किया था…

परिचय…

शिवकुमार शर्मा जी का जन्म १३ जनवरी, १९३८ को जम्मू के गायक पंडित उमा दत्त शर्मा के घर हुआ था था। शिवकुमार शर्मा की माता जी स्वयं एक शास्त्रीय गायिका थीं जो बनारस घराने से संबंध रखती थीं। चार वर्ष की अल्पायु से ही शिवकुमार शर्मा ने अपने पिता से गायन व तबला वादन सीखना प्रारंभ कर दिया था। इनके पिता ने संतूर वाद्य पर अत्यधिक शोध किया और यह दृढ़ निश्चय किया कि शिवकुमार प्रथम भारतीय बनें जो भारतीय शास्त्रीय संगीत को संतूर पर बजायें। तब इन्होंने १३ वर्ष की आयु से ही संतूर बजाना आरंभ किया और आगे चलकर इनके पिता का स्वप्न पूरा हुआ।

प्रथम प्रस्तुति एवम निष्ठा…

शिवकुमार शर्मा ने अपनी प्रथम सार्वजनिक प्रस्तुति मुंबई में वर्ष १९५५ में दी।

शिवकुमार शर्मा संतूर के महारथी होने के साथ साथ एक अच्छे गायक भी थे। इनका प्रथम एकल एल्बम वर्ष १९६० में आया। वर्ष १९६५ में इन्होंने निर्देशक वी शांताराम की नृत्य-संगीत के लिए प्रसिद्ध हिन्दी फिल्म झनक झनक पायल बाजे का संगीत दिया। इसके अलावा श्री शर्मा ने फासले, सिलसिला, लम्हे, चांदनी, डर आदि हिन्दी फ़िल्मों में प्रसिद्ध संगीत दिया है।

वर्ष १९६७ में इन्होंने प्रसिद्ध बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और पंडित बृजभूषण काबरा की संगत से एल्बम कॉल ऑफ द वैली बनाया, जो शास्त्रीय संगीत में बहुत ऊंचे स्थान पर गिना जाता है। इन्होंने पं. हरि प्रसाद चौरसिया के साथ कई हिन्दी फिल्मों में संगीत दिया है। फिल्म संगीत का श्रीगणेश वर्ष १९८० में फिल्म ‘सिलसिला’ से हुआ था। इन्हें शिव-हरि नाम से प्रसिद्धि मिली। पंडित शर्मा की पत्नी का नाम मनोरमा शर्मा है। जिनसे इन्हें दो पुत्र हुए।

पिता-पुत्र की जुगलबंदी…

शिवकुमार शर्मा ने अपने पुत्र राहुल शर्मा को अपना शिष्य बनाया और संतूर-वादन में पारंगत किया। शिवकुमार शर्मा ने अपने अनोखे संतूर वादन की कला अपने सुपुत्र राहुल को प्रदान की। पिता-पुत्र की यह जोड़ी वर्ष १९९६ से साथ-साथ संतूर-वादन में जुगलबंदी करते आ रहे थे।

मृत्यु…

पंड‍ित शिवकुमार शर्मा का निधन १० मई, २०२२ को हुआ। पिछले ढाई साल से लॉकडाउन और कोविड काल में तो पंडित जी घर से भी बहुत कम निकले। पिछले छह महीनों से उनको गुर्दे से संबंधित परेशानी थी। हालांकि उम्र संबंधी परेशानियों और किडनी की समस्या की वजह से उन्हें डायलिसिस भी करानी पड़ी थी। शिवकुमार शर्मा का निधन दिल का दौरा पड़ने से हुआ।

सम्मान एवं पुरस्कार…

शिवकुमार शर्मा जी को कई राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, जिनमें से कुछ यहां दिया जा रहा है।

१. वर्ष १९८५ में उन्हें अमरीका के बोल्टिमोर शहर की सम्माननीय नागरिकता प्रदान की गई।
२. वर्ष १९८६ में शिवकुमार शर्मा को ‘संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
३. वर्ष १९९१ में उन्हें ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
४. वर्ष २००१ में उन्हें ‘पद्म विभूषण पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।

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