November 21, 2024

दुर्गा कुंड मंदिर काशी के दिव्य और प्राचीन मंदिरों में से एक है। जैसा नाम से ही जान पड़ता है कि यह मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि के समय इस मंदिर का महत्व अपने उच्चतम स्तर पर बढ़ जाता है। मंदिर को दुर्गा कुंड और लाल मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। इस भव्य लाल पत्थर के मंदिर में ही एक तरफ “दुर्गा कुंड” है। इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है।

रहस्य…

मान्यताओं के अनुसार शुंभ और निशुंभ राक्षसों का वध करने के पश्चात मां दुर्गा ने इसी स्थान पर विश्राम किया था। इसीलिए कहा जाता है कि यहां आदि शक्ति के रूप में माता का वास है और यह मंदिर प्राचीन काल से अपने इसी स्थल पर अवस्थित है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां मां स्वयं प्रकट होती हैं, उस स्थल पर मूर्ति स्थापित नहीं को जाती है। ऐसे मंदिरों में सिर्फ प्रतीक की पूजा की जाती है। दुर्गा कुण्ड मंदिर इसी श्रेणी में आता है। यहां माता के मुख और चरण पादुका की पूजा की जाती है। काशी का दुर्गा मंदिर बीसा यंत्र पर आधारित है। बीसा यंत्र का अर्थ है बीस कोणों की यांत्रिक संरचना जिस पर मंदिर की आधारशिला रखी हुयी है। इस मंदिर में देवी दुर्गा ‘यंत्र’ रूप में विराजमान हैं।

निर्माण…

दुर्गा कुण्ड मंदिर का निर्माण १८वीं शताब्दी में बंगाल की रानी भवानी ने करवाया था। यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली की वास्तुकला में लाल पत्थरों से बनाया गया था। उस समय मंदिर के निर्माण में करीब ५० हजार रुपये की लागत आई थी। मां दुर्गा के केंद्रीय प्रतीक के रंगों से मेल खाने के लिए मंदिर को गेरू से लाल रंग में रंगा गया है। दुर्गा मंदिर के पीछे देवी अन्नपूर्णा और गणेश जी का मंदिर है।

आभास…

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही एक अलग तरह की सकारात्मक ऊर्जा का आभास होता है। दुर्गा कुण्ड मंदिर में प्रवेश के लिए दो द्वार हैं। मुख्य द्वार मंदिर के मुख्य परिसर के सामने है और दूसरा द्वार जो छोटा है वह मंदिर के दाहिनी ओर है। दुर्गा कुण्ड मंदिर में बाबा भैरोनाथ, लक्ष्मीजी, सरस्वतीजी, हनुमानजी और माता काली के मंदिर भी हैं। ऐसा माना जाता है कि माता दुर्गा के दर्शन के बाद यहां के पुजारी के मंदिर में दर्शन करना अनिवार्य है। तभी मां की पूजा फलीभूत होती है।

कुक्कुटेश्वर महादेव / पुजारी का मंदिर…

मंदिर से जुड़ी एक कथा के अनुसार, एक बार काशी क्षेत्र के कुछ लुटेरों ने इस मंदिर में मां दुर्गा के दर्शन करते हुए यह संकल्प लिया कि यदि वे जिस कार्य हेतु जा रहे हैं, अगर उसमें सफल हुए तो वे मानव बलि देंगे। मां की कृपा थी अतः वे अपने कार्य में सफल हुए और वे मंदिर आए और एक ऐसे व्यक्ति को खोजने की कोशिश करने लगे, जिसपर कोई दाग न हो क्योंकि बलिदान के लिए वैसा व्यक्ति ही उपयुक्त होता है।

तब केवल मंदिर के पुजारी ही बलि के लिए उन लोगो को उपयुक्त दिखें। पुजारी से यह कहते हुए, उनलोगो ने उन्हें बलि के लिए पकड़ लिया तो पुजारी ने कहा, ‘रुको, मैं माता रानी की पूजा कर लूँ, फिर आप लोग मेरी बलि माँ को चढ़ा देना।’ जब पुजारी की पूजा समाप्त हुई, तो लुटेरों ने उस पुजारी की बलि मां को समर्पित की। बलि देते ही मां प्रकट हुईं और पुजारी को पुनर्जीवित कर दिया और एक वरदान मांगने के लिए कहा। तब पुजारी ने मां से कहा, ‘उसे जीवन नहीं, आपके चरणों में चीर विश्राम चाहिए।’ पुजारी की भक्ति से अहलादित माँ ने वरदान दिया कि मेरे दर्शन के पश्चात जो कोई उस पुजारी का दर्शन नहीं करेगा, उसकी पूजा फलदायी नहीं होगी। थोड़ी देर बाद पुजारी ने उसी मंदिर प्रांगण में समाधि ले ली, जिन्हे आज कुक्कुटेश्वर महादेव कहा जाता है।

कुण्ड की कथा…

ऐसा कहा जाता है कि काशी के राजा सुबाहू ने अपनी बेटी के विवाह के लिए स्वयंवर की घोषणा की थी। स्वयंवर से पहले सुबाहू की बेटी ने अपना विवाह राजकुमार सुदर्शन के साथ सपने में देखा । राजकुमारी ने यह बात अपने पिता राजा सुबाहू को बताई। जब राजा ने स्वयंवर में आए राजाओं और राजकुमारों को यह बताया, तो सभी राजा, राजकुमार सुदर्शन के खिलाफ हो गए और सुदर्शन को युद्ध की चुनौती दी। राजकुमार ने युद्ध से पहले देवी भगवती की पूजा की और उनसे जीत के लिए आशीर्वाद मांगा। कहा जाता है कि युद्ध के दौरान मां भगवती ने राजकुमार के सभी विरोधियों का वध किया था। युद्ध में इतना खून-खराबा हुआ कि खून का एक कुंड बन गया, जो दुर्गाकुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसके बाद राजकुमार सुदर्शन का विवाह राजकुमारी से हुआ।

विशेष…

उत्सव और औपचारिक समारोह में भी दर्शनाभिलाषी यहां आते हैं। मुंडन आदि शुभ कार्यों में मां के दर्शन करते हैं। मंदिर के अंदर एक हवन कुंड है, जहां प्रतिदिन हवन किया जाता है। कुछ लोग यहां तंत्र साधना और तंत्र पूजा भी करते हैं। विशेष पूजा का आयोजन विशेष रूप से दुर्गा पूजा और नवरात्रि के त्योहार पर किया जाता है।

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3 thoughts on “दुर्गा कुंड मंदिर

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