मधुबनी का भटपुरा और भटसीमर गांव भाट्टमीमांसा के गढ़ थे। मीमांसा अध्ययन की प्रधानता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जब १५वीं सदी के मध्य में विश्वासदेवी के शासन काल में यहाँ पंडितों की जब सभा बुलाई गई तो उसमें मीमांसकों की ही संख्या १४०० के करीब थी। इन्हीं मीमांसकों में से एक थे पंडित मंडन मिश्र। वे अद्वैत वेदान्ती थे। उन्हें आदि शंकराचार्य के समकालीन माना गया है। वे महान मीमांसक कुमारिल भट्ट के शिष्य थे।
परिचय…
पंडित मंडन मिश्र का जन्म ८वीं शताब्दी के मध्य में बिहार के सहरसा अंतर्गत महिषी ग्राम में हुआ था। उन्होंने शंकराचार्य से शास्त्रार्थ किया था, जो ४२ दिनों तक चला था। उस शास्त्रार्थ पंडित मंडन मिश्र की हार हुई थी, जिसके बाद उनकी पत्नी उभय भारती ने शंकराचार्य के साथ शास्त्रार्थ किया, जो २१ दिन तक चला। शंकराचार्य अंत में उभय भारती के एक सवाल की गहराई समझते हुए नतमस्तक हो गए। उन्होंने अपनी हार मान ली।
पंडित मंडन मिश्र का तेज…
जब शंकराचार्य पंडित मंडन मिश्र को खोज में उनके गांव पहुंचे और गांव की पनिहारिन से उनके घर का पता पूछा तब पनिहारिन नें उत्तर में दो श्लोक सुनाए…
“स्वतः प्रमाण परत: प्रमाण शुकांगना यत्र विचारयन्ति।
शिश्योपशिष्यौरूपशु यमानमवेदि तन्मण्डनमिश्र धाम।।
जगदध्रुवं स्यात्रगद ध्रुव वा कोरात्मा यत्र गिरोगिरन्ती।
द्वारस्थ नीडांगसासन्निरूद्ध जानीहि तन्मण्डन मिश्र धाम।।”
जैसा कि आपने ऊपर देखा कि जिसके गांव की पनिहारिन संस्कृत का ज्ञान रखती थीं, जिसके दो तोते आपस में वेद का पाठ करते हों और जिनकी पत्नी उभय भारती साक्षात सरस्वती की अवतार मानी जाती हैं। और जिन्होंने आदि शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में पराजित कर दिया हो, उस विद्वान के तेज की क्या कोई सीमा हो सकती है?
इससे तत्कालीन बिहार के विद्या-वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है। यहाँ की साधारण स्त्रियाँ भी कभी संस्कृत भाषा में पारंगत थीं।
रचनाएं…
विधि विवेक, भावना विवेक, ब्रह्म सिद्धि, नैश्कभ्य सिद्धि, वेदांत वार्त्तिक, मंडन त्रिशंती, गोपालिका आदि।