सड़क के गड्ढों और उसमें चमकते हुए पानी के बीच से गुजरते हुए अपने सिलाई छोड़ चुके कपड़े के पुराने जूते पर झल्लाता अपने घर पहुंचा।
जाने क्यों कभी वो मेरे पसंदीदा जूतों में से हुआ करता था? मगर आज मुझे उसपर बड़ी खोप्त हो गई थी क्योंकि जूतों की दुनिया में वही एक था, जिसने मेरी इज्जत उड़ाई थी, उस सभ्य सड़क पर।
उस पर गुज़र रहे राहगीर शायद मुझे उसकी वजह से ही देखकर मुस्कुरा रहे थे।
इसलिए मैने भी उस कपड़े के पुराने जूते को सजा देकर अपनी जिंदगी से और उसके साथियों से दूर करने का विचार मन ही मन में बना लिया था।
सच में ये पूरा बेशर्म है, जो अपने भीतर सड़क के जमे पानी को भी घर ले आया था। उसपर से उसकी ढीठाई तो देखिए कि वह मेरे पैरों से निकलने का नाम ही नहीं ले रहा।
पहले तो मैंने उसे पैरों से ही धुन कर निकलना उचित समझा, मगर वो जिद्दी जब उसपर भी नहीं निकला तो मैने हारकर हाथ लगाया…
उई मां! ये क्या उंगली में चुभा?
अरे! ये लोहे की पतली सी कील…
जूते चुप चाप पैरों से बाहर आ गए थे, ना वो तब कुछ बोले थे, जब मैंने उन्हें बुरा भला कहा था और ना तब जब मेरे पैरों को बचाने में स्वयं घायल हुए थे।
वे तब भी चुप रहे जब मैं उन्हें रौंदता रहा।
शायद मैंने उन्हें पहली बार उनकी धर्म निष्ठा को देखकर ही अपने साथ रखा होगा और आज बस उन्हें इसलिए हीन भावना से देख रहा था कि वो आज की रंगीनियत के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे।