कोई लौटा दे मेरे, बीते हुए दिन
बीते हुए दिन वो हाय, प्यारे पल छिन
कोई लौटा दे …
हालत ये हो गई है कि टीवी और रेडियो या अखबारों से किसी महान व्यक्ति के जन्म और पून्य तिथि के बारे में पता चलता है, उसी तरह आज सुबह जब मोबाइल खोला, उस वक्त तकरीबन नौ बजे होंगे,आज के दिन,
यानी ३०अगस्त को गीतकार शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र का जन्म दिन है| हमने बचपन में उनके लिखे गीत बहुत बार गुनगुनाये भी हैं।
सजन रे झूठ मत बोलो,
खुदा के पास जाना है।
न हाथी है ना घोड़ा है,
वहाँ पैदल ही जाना है॥
#३०अगस्त१९३०
#शैलेन्द्र
शैलेन्द्र हिन्दी के एक प्रमुख गीतकार थे। इनका जन्म रावलपिंडी में हुआ था। शैलेन्द्र हिन्दी फिल्मों के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के भी एक प्रमुख गीतकार थे।
आशावादी रुझान के गीतकार शैलेन्द्र ने जीवन से भरपूर अनेकों ऐसे गीत लिखे हैं, जो आज भी हमें प्रेरणा देते हैं| उनके लिखे बेहतरीन गीतों की फ़ेहरिश्त सी है इसमें किसे आप बेहतरीन मानें किसे नहीं ये समझ में आता नहीं |
दुनिया बनाने वाले,
क्या तेरे मन में समाई।
काहे को दुनिया बनाई,
तूने काहे को दुनिया बनाई॥
गुलज़ार साहब उनके बारे में लिखते हैं “बिना शक शंकर शैलेन्द्र को हिन्दी सिनेमा का आज तक का सबसे बड़ा लिरिसिस्ट कहा जा सकता है। उनके गीतों को खुरच कर देखें और आपको सतह के नीचे दबे नए अर्थ प्राप्त होंगे। उनके एक ही गीत में न जाने कितने गहरे अर्थ छिपे होते थे”।
सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी,
सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी।
गीतकार के रुप में उन्होंने अपना पहला गीत राजकपूर की फिल्म “बरसात” के लिए ‘बरसात में तुमसे मिले हम सजन ‘लिखा था। इसे संयोग हीं कहा जाए कि फिल्म “बरसात” से हीं बतौर संगीतकार शंकर जयकिशन ने अपने कैरियर की शुरुआत की थी।
शैलेन्द्र के बारे में आज के मशहूर गीतकार जावेद अख्तर साहब कहते हैं “जीनियस थे शैलेन्द्र,। दरअसल, शैलेन्द्र का रिश्ता बनता है कबीर और मीरा से। बड़ी बात सादगी से कह देने का जो गुण शैलेन्द्र में था, वो किसी में नहीं था। यहाँ तक कि ‘गम दिए मुस्तकिल’ से लेकर ‘आज मैं ऊपर आसमाँ नीचे’ जैसे गाने लिखने वाले मज़रूह साहब ने एक बार खुद(जावेद अख्तर) मुझसे कहा था कि “सच पूछो तो सही मायनों में गीतकार शैलेन्द्र ही हैं”। शैलेन्द्र का रिश्ता उत्तर भारत के लोक गीतों से था। लोक गीतों में जो सादगी और गहराई होती है वो शैलेन्द्र के गीतों में थी। ‘तूने तो सबको राह दिखाई, तू अपनी मंजिल क्यों भूला, औरों की उलझन सुलझा के राजा क्यों कच्चे धागों में झूला। क्यों नाचे सपेरा’अगर क्यों नाचे सपेरा जैसी लाइन मैं लिख पाऊँ तो इत्मीनान से जीऊँगा”।
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसीका दर्द मिल सके तो ले उधार
किसीके वास्ते हो तेरे दिल में प्यार
जीना इसी का नाम है
सरल और सटीक शब्दों में भावनाओं और संवेदनाओं को अभिव्यक्त कर देना शैलेन्द्र जी की महान् विशेषता थी। ‘किसी के आँसुओं में मुस्कुराने’ जैसा विचार केवल शैलेन्द्र जैसे गीतकार के संवेदनशील हृदय में आ सकता है। उनकी संवेदना का एक उदाहरण और देखिये….
कल तेरे सपने पराये भी होंगे,
लेकिन झलक मेरी आँखों में होगी
फूलों की डोली में होगी तू रुख़सत,
लेकिन महक मेरी साँसों में होगी….
फ़िल्मों में आने के बाद और इतनी ऊंची मुकाम पाने के बाद भी उनका ये जज़्बा बना ही रहा इसीलिये तो वे ग़रीब भारतीय की अभिव्यक्ति को इन शब्दों में करते हैं…
मेरा जूता है जापानी,
ये पतलून इंग्लिस्तानी
सर पे लाल टोपी रूसी,
फिर भी दिल है हिंदुस्तानी…
आप जन्मदिन की बधाई नहीं देंगे ? ? ?