गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा, भगवान दत्तात्रेय ने कहा, “आत्मा ही मेरा गुरु है, तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।” उन्होंने कहा मेरे चौबीस गुरुओं के नाम है…
१) पृथ्वी, २) जल, ३) वायु, ४) अग्नि, ५) आकाश, ६) सूर्य, ७) चन्द्रमा, ८) समुद्र, ९) अजगर, १०) कपोत, ११) पतंगा, १२) मछली, १३) हिरण, १४) हाथी, १५) मधुमक्खी, १६) शहद निकालने वाला, १७) कुरर पक्षी, १८) कुमारी कन्या, १९) सर्प, २०) बालक, २१) पिंगला वैश्या, २२) बाण बनाने वाला, २३) मकड़ी, २४) भृंगी कीट।
भगवान दत्तात्रेय के शिष्यों मे एक परशुराम जी भी थे, उन्होने परशुराम जी को श्रीविद्या-मंत्र प्रदान की थी। अपने दूसरे शिष्य शिवपुत्र कार्तिकेय को दत्तात्रेय ने अनेक विद्याएँ दी थी। भक्त प्रह्लाद को अनासक्ति-योग का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय दत्तात्रेय को ही जाता है। मुनि सांकृति को अवधूत मार्ग, कार्तवीर्यार्जुन को तन्त्र विद्या एवं नागार्जुन को रसायन विद्या इनकी कृपा से ही प्राप्त हुई थी। गुरु गोरखनाथ को आसन, प्राणायाम, मुद्रा और समाधि-चतुरंग योग का मार्ग भगवान दत्तात्रेय की भक्ति से प्राप्त हुवा।
भगवान दत्तात्रेय से ना तो कोई बड़ा शिष्य हुआ और ना ही कोई गुरू। भगवान दत्तात्रेय पूरी सृष्टि क़ो अपना गुरू मानते हैं और पूरी सृष्टी के प्राणी उन्हें अपना गुरू। इसीलिए उन्हें ‘परब्रह्ममूर्ति सद्गुरु’ और ‘श्रीगुरुदेवदत्त’भी कहा जाता हैं। उन्हें गुरु वंश का प्रथम गुरु, साधक, योगी और वैज्ञानिक माना जाता है।
यह तन विष की वेलरी,
गुरु अमृत की खान।
शीश दिये जो गुरु मिले,
तो भी सस्ता जान॥