पण्डित वाचहि पोथिआ न बूझहि बीचार।
आन को मती दे चलहि माइआ का बामारू।
कहनी झूठी जगु भवै रहणी सबहु सबदु सु सारू॥
एक बार भाई लहना जी ने कहीं से गुरू नानक साहिब जी के शब्द सुने और शब्द में कहे गए गुरमत के फलसफे से वो इतने प्रभावित हुए की उन्होने तुरन्त निर्णय लिया कि वो सतगुर नानक साहिब के दर्शन के लिए करतारपुर जायेंगे। सतगुर नानक साहिब जी से पहली भेंट ने ही उनके जीवन में क्रांति ला दी। सतगुर ने उन्हें आदि शक्ति या हुक्म का भेद समझाया और बताया की परमेश्वर की प्राप्ति सिर्फ अपने अंदर से ही की जा सकती है। सतगुरु नानक से भाई लहने ने आत्म ज्ञान लिया जिसने उन्हें पूर्ण रूप से बदल दिया।
वो सतगुर नानक साहिब की विचारधारा से सिख बन गये एवं करतारपुर में निवास करने लगे। सतगुर नानक देव जी के महान एवं पवित्र कार्य के प्रति उनकी महान भक्ति और ज्ञान को देखते हुए सतगुर नानक साहिब जी ने….
#७सितम्बर१५३९ को गुरुपद प्रदान किया और गुरमत के प्रचार का जिम्मा सौंपा गया। गुरू साहिब ने उन्हें एक नया नाम #अंगद (गुरू अंगद साहिब) दिया।