November 21, 2024

जिसके नाम में ही मजबूती हो, वो वीर क्या कहीं झुकता है? ऐसे वीर भारत प्रहरी को मेरा प्रणाम। इनके बारे में मै क्या कहूँ, जिनके चाहने वाले करोणो हैं, हर किसी ने कुछ ना कुछ लिखा है। बस मैं उनके जन्मोत्सव पर उनकी नमन में उन्ही की एक कविता पेश करता हूँ।

टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।

सत्य का संघर्ष सत्ता से,
न्याय लड़ता निरंकुशता से,
अँधेरे ने दी चुनौती है,
किरण अन्तिम अस्त होती है।

दीप निष्ठा का लिए निष्कम्प
वज्र टूटे या उठे भूकम्प,
यह बराबर का नहीं है युद्ध,
हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध,
हर तरह के शस्त्र से है सज्ज,
और पशुबल हो उठा निर्लज्ज।

किन्तु फिर भी जूझने का प्रण,
पुन: अंगद ने बढ़ाया चरण,
प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार,
समर्पण की माँग अस्वीकार।

दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते;
टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।

सन् १९७५ में आपातकाल के दिनों कारागार में लिखित रचना

धन्यवाद !

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