रासबिहारी बोस
जन्म – २५ मई १८८६
स्थान – बंगाल के वर्धमानजिले के सुबालदह
इनकी आरम्भिक शिक्षा फ्रांसीसियों के चन्दननगर में हुई, जहाँ उनके पिता विनोद बिहारी बोस नियुक्त थे। रासबिहारी बोस बचपन से ही देश की स्वतन्त्रता के स्वप्न देखा करते थे और क्रान्तिकारी गतिविधियों में उनकी गहरी दिलचस्पी थी। प्रारम्भ में रासबिहारी बोस ने देहरादून में कुछ समय तक हेड क्लर्क के रूप में काम किया। उसी दौरान क्रान्तिकारी जतीन मुखर्जी की अगुआई वाले युगान्तर नामक क्रान्तिकारी संगठन के अमरेंद्र चटर्जी से परिचय हुआ और वह बंगाल के क्रान्तिकारियों के साथ जुड़ गये। बाद में वह अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर संयुक्त प्रान्त, (वर्तमान उत्तरप्रदेश) और पंजाब के प्रमुख आर्यसमाजी क्रान्तिकारियों के निकट आये।
दिल्ली में जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार के बाद जब वायसराय लार्ड हार्डिंग की दिल्ली में सवारी निकाली जा रही थी तो उसकी शोभायात्रा पर बम फेंकने की योजना बनाने में रासबिहारी की प्रमुख भूमिका रही थी। अमरेंद्र चटर्जी के एक शिष्य वसंत कुमार विश्वास ने उन पर बम फेंका लेकिन निशाना चूक गया। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रासबिहारी बोस के पीछे लग गयी और वह बचने के लिये रातों-रात रेलगाडी से देहरादून खिसक लिये और आफिस में इस तरह काम करने लगे मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। अगले दिन उन्होंने देहरादून के नागरिकों की एक सभा बुलायी, जिसमें उन्होंने वायसराय पर हुए हमले की निन्दा भी की। इस प्रकार उन पर इस षडयन्त्र और काण्ड का प्रमुख सरगना होने का किंचितमात्र भी सन्देह किसी को न हुआ।बंगाल में बाढ़ राहत कार्य के दौरान रासबिहारी बोस जतीन मुखर्जी के सम्पर्क में आये, जिन्होंने उनमें नया जोश भरने का काम किया। रासबिहारी बोस इसके बाद दोगुने उत्साह के साथ फिर से क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालन में जुट गये। भारत को स्वतन्त्र कराने के लिये उन्होंने प्रथम विश्व युध्द के दौरान गदर की योजना बनायीऔर इसके लिए अपने अनेक भरोसेमंद क्रान्तिकारियों की सेना में घुसपैठ कराने की कोशिश की गयी।
युगान्तर के कई नेताओं ने सोचा कि यूरोप में युद्ध होने के कारण चूँकि अभी अधिकतर सैनिक देश से बाहर गये हुये हैं, अत: शेष बचे सैनिकों को आसानी से हराया जा सकता है लेकिन दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास भी असफल रहा और कई क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ब्रिटिश खुफिया पुलिस ने रासबिहारी बोस को भी पकड़ने की कोशिश की लेकिन वह उनके हत्थे नहीं चढ़े और भागकर विदेश से हथियारों की आपूर्ति के लिये राजा पी. एन. टैगोर के छद्म नाम से जापान के शहर शंघाई में पहुँचे और वहाँ रहकर अपने देश की आजादी के लिये काम करने लगे। इस प्रकार उन्होंने कई वर्ष निर्वासन में बिताये। जापान में भी रासबिहारी बोस चुप नहीं बैठे और वहाँ के अपने जापानी क्रान्तिकारी मित्रों के साथ मिलकर देश की स्वतन्त्रता के लिये निरन्तर प्रयास करते रहे। उन्होंने जापान में अंग्रेजी अध्यापन के साथ लेखक व पत्रकार के रूप में भी काम प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने वहाँ न्यू एशिया नाम से एक समाचार-पत्र भी निकाला। केवल इतना ही नहीं, उन्होंने जापानी भाषा भी सीखी और १६ पुस्तकें लिखीं। उन्होंने टोकियो में होटल खोलकर भारतीयों को संगठित किया तथा रामायण का जापानी में अनुवाद किया।
इधर ब्रिटिश सरकार अब भी उनके पीछे लगी हुई थी और वह जापान सरकार से उनके प्रत्यर्पण की माँग कर रही थी, इसलिए वह लगभग एक साल तक अपनी पहचान और आवास बदलते रहे। जापान में ही रासबिहारी बोस ने प्रसिद्ध पैन एशियाई समर्थक शोमा आइजौ और शोमा कोस्तूस्को की पुत्री से विवाह कर लिया और वहाँ की नागरिकता ले ली। जापान में वह पत्रकार और लेखक के रूप में रहने लगे। जापानी अधिकारियों को भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष में खड़ा करने और देश की आजादी के आन्दोलन को उनका सक्रिय समर्थन दिलाने में भी रासबिहारी बोस की अहम भूमिका रही। उन्होंने टोक्यो में एक सम्मेलन बुलाया जिसमें ‘इंडियन इंडीपेंडेंस लीग’ की स्थापना का निर्णय किया गया। इस सम्मेलन में उन्होंने भारत की आजादी के लिए एक सेना बनाने का प्रस्ताव भी पेश किया।
रासबिहारी बोस ने बैंकौक में लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित करने का प्रस्ताव पारित किया गया। जापान ने मलय और बर्मा के मोर्चे पर कई भारतीय युद्धबन्दियों को पकड़ा था। इन युद्धबन्दियों को इण्डियन इण्डिपेण्डेंस लीग में शामिल होने और आई०एन०ए०का सैनिक बनने के लिये प्रोत्साहित किया गया। आई०एन०ए० का गठन रासबिहारी बोस की इण्डियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में किया गया। बोस ने एक झण्डे का भी चयन किया जिसे आजाद नाम दिया गया। इस झण्डे को उन्होंने सुभाष के हवाले किया।रासबिहारी बोस शक्ति और यश के शिखर को छूने ही वाले थे कि जापानी सैन्य कमान ने उन्हें और जनरल मोहन सिंह को आई०एन०ए० के नेतृत्व से हटा दिया लेकिन आई०एन०ए० का संगठनात्मक ढाँचा बना रहा। बाद में इसी ढाँचे पर सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के नाम से आई०एन०एस० का पुनर्गठन किया।
भारत को ब्रिटिश शासन की गुलामी से मुक्ति दिलाने की जी-तोड़ मेहनत करते हुए…
किन्तु इसकी आस लिये हुए एक दिन वो चले गए उनके जाने से कुछ समय पहले जापानी सरकार ने उन्हें आर्डर ऑफ द राइजिंग सन के सम्मान से अलंकृत भी किया था।
महान आत्मा के जन्मदिवस पर अश्विनी राय ‘अरुण’ का नमन, वंदन।
धन्यवाद !