November 25, 2024

UBI साहित्यिक प्रतियोगिता : ३०
विषय : अंधेरा
दिनाँक : ०३/१२/१९

अंधेरे को मिटाने को
एक चाँद तू भी जला ले
बुझ गए चरागो में
तू आज एक सूरज उगा ले

अंधेरे के बोझ से
क्यूँ घबरा रहा है तेरा मन
खोल अपनी आंखों को
उनमें चाँद और सूरज सजा ले

अंधेरे में हजारों हाथों से
अपने को बचाना मुश्किल है
टकराते वजूद को बचाने को
आज अपने ज्ञानचक्षु जला ले

कभी गुफ़्तुगू करते नहीं
ये ख़ामोश काली रातें
हर इक सदा से बचने को
माहौल गुंजायमान कराले

औरों से क्या करें शिकायत
स्वयं से हम भी कहां मिलते हैं
सबको स्वयं से आज मिलाने को
अपने अंदर इतनी आग जला ले

कभी समय ऐसा भी आता है
मन थक जाता है जीवन से
पुराने साए से पीछा छुड़ाकर
एक नया साया तू आज बना ले

कभी झुठ से झुठ नहीं मिटते
ना हीं रातों से रात कटती हैं
दुश्मन ना समझ अपनों को
अंधेरों से निकल सुबह खिलती है

अश्कों के आबरू खातिर
मुस्कुराना भी पड़ता है
जेठ भरी दुपहरी में भी तू
आज बगिया के फूल खिलाले

अंधेरे को मिटाने को
एक चाँद तू भी जला ले
बुझ गए चरागो में
तू आज एक सूरज उगा ले

अश्विनी राय ‘अरूण’

About Author

Leave a Reply