आदित्यहृदय स्तोत्र में भगवान सूर्य की स्तुति में एक शब्द आता है- विन्ध्यवीथीप्लवङ्गम। अर्थात् तीव्र गति से आकाश में विचरण करने वाले। अविश्रांत रूप से अहर्निश गतिमान रहने के कारण ही एतरेय ब्राह्मण में सूर्य का दृष्टांत देकर मनुष्य को सदैव चलते रहने की प्रेरणा प्रदान की गई है।
सूर्यस्य पश्य श्रेमाणं यो न तन्द्रयते चरन्
मगर एक अपूर्व घटना घटी। अबाध गति से चलने वाले सूर्य एक दिन रुक गए और रुके भी ऐसे कि फिर चलने की सुध न रही। वह दिन कौन होगा?
मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ ।।
जिस शुभ दृश्य को देखने के लिए सूर्य अपनी गति रोक दे वह घटना साधारण तो नहीं हो सकती। अयोध्या, तिस में भी में राम लला का जन्म ! अयोध्या स्वयं इस भूमि पर किसी कौतुक से कम नहीं! एक ऐसा नगर जो भगवान के मस्तक पर विराजमान है।
अयोध्यापुरी मस्तकम् (रूद्रयामल )
कुश और लव ने रामजी के दरबार में अयोध्या की महिमा गाई है। एक ऐसी नगरी जिसे वैकुंठ से धरती पर लाया गया है। इसे मनु ने वरदान में पाया है ब्रह्मा से।
अयोध्या नाम नगरी तत्रासील्लोकविश्रुता ।
मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी निर्मिता स्वयम् ।।
भगवान का अवतरण हुआ पर उनसे पूर्व उनकी पुरी का भी अवतरण हुआ भू लोक पर। वैकुंठ का हृदय है अयोध्या। आदिकवि ने एक पूरा सर्ग लिखा इसकी महिमा में। कहते हैं मनु ने जब इसे पृथ्वी पर स्थापित करना चाहा तो पृथ्वी ने धारण करने में अक्षमता व्यक्त कर दी। तब श्री हरि ने इसे अपने सुदर्शन चक्र पर स्थापित किया। भूमि भर पर कोई चक्रांकित पुरी है तो वह अयोध्या है। मोक्षदायिनी पुरियों में सुमेरू यह पुरी जिसमें निवास करने वालों को जन्म मरण के चक्र से मुक्त रखा गया है।
अयोध्या च पर ब्रह्म सरयू सगुण पुमान्।
तन्निवासी जगन्नाथ: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।।
अयोध्या पुरी भगवान का स्वरूप है और सरयू सगुण ब्रह्म है। यहां निवास करने वाला हर प्राणी जगन्नाथ का स्वरूप है। यहां के नागर तो ऐसे कि शील और सदाचार में महर्षियों से सामानता रखते हैं। सभी सुंदर, नहाए धोए और सुगंधित इत्र फुलेल लगाने वाले। श्रीहीन और रूप रहित ढूंढने से भी नहीं मिलता। यहां के शासकों का गौरव तो गिरी से भी गुरु है। एक नाम है सगर जिन्होंने पृथ्वी को सागर जैसा जलाशय दिया।
येषां स सगरो नाम सागरो येन खानित:।
महाराज इक्ष्वाकु जिन्होंने पृथ्वी पर सर्वप्रथम गीता का ज्ञान प्राप्त करने का गौरव पाया। राजा रघु के पराक्रम को कौन भूलेगा जिनके भय से कुबेर धन वर्षा करने को विवश होता है और भगीरथ का अवदान तो आज भी भागीरथी गंगा के रूप में साकार समुपस्थित है।
अयोध्या के नाम समस्त सौभाग्य जुड़े हुए हैं फिर रामावतरण का परम सौभाग्य क्यों न जुड़ता? सूर्य तसल्ली से अपना सप्तसप्ति रोककर इस अनुपम क्षण के साक्षी बन रहे हैं। सूर्यास्त में अयोध्या नगरी इतनी सुंदर लग रही है मानो सज धज कर स्वयं रात्रि ही उपस्थित हो गई हो किंतु सूर्य से किंचित लज्जित होकर लला गई और अब संध्या का रूप धर लिया है। अगर धूप के धुंए से रात्रि जैसा अंधकार छा गया। ध्वजा, पताका और तोरण से इसकी शोभा बहुगुणित हो गई। कैसा दृश्य रहा होगा?
वैराग्य के शिखर पर विराजित कुलगुरु वसिष्ठ बालक राम के दर्शन हेतु सपत्नीक दौड़ पड़े। इस क्षण की उन्हें भी चिरकाल से प्रतीक्षा थी। पुरोहित जैसे निंदित पद का वरण उन्होंने श्री राम सान्निध्य हेतु किया था।
उपरोहित्य कर्म अति मंदा।
बेद पुरान सुमृति कर निंदा।।
जब न लेउँ मैं तब बिधि मोही।
कहा लाभ आगें सुत तोही।।
जिनके दर्शन के लिए सूर्य अपनी गति छोड़ रहे हैं, ज्ञानी अपना व्रत तोड़ रहे हैं और शिव अपनी स्थिति, वह पुण्य योग भाग्य वालों को ही मिलता होगा।
फिर ये कौन लोग हैं जो इस अवसर पर भी त्रिवक्रा की तरह मातम मना रहे हैं। अयोध्या का पुनर्उत्थित स्वरूप भारत का पुनर्उत्थित रूप है। राम मंदिर का उन्नत शिखर भारतीय अस्मिता का उन्नत शिखर है। धनुर्धारी राम भारतीय पौरुष के प्रतीक हैं और मंदिर हमारी सामूहिकता का साकार विग्रह। राम हमारे प्राण हैं, राम मंदिर हमारे विगत स्याह का पटाक्षेप। राम और राम मंदिर से ईर्ष्या करने वाली शक्लें याद रखी जाएंगी।