भोजपुरी का शेक्सपियर
कवि
गीतकार
नाटककार
नाट्य निर्देशक
लोक संगीतकार
अभिनेता अर्थात
भिखारी ठाकुर
जिनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया।
अफसोस
१० जुलाई
आज पहली बार श्री ठाकुर जी के बारे मे लिखने चला औऱ वो भी उनके पुण्यतिथि पर। इस बार की पुण्यतिथि खास है। भिखारी ठाकुर की प्रदर्शन कला का, जिसे पॉपुलर शब्द में नाच कहा जाता है।
यह 100वां साल है।
एक सदी पहले वह बंगाल में हजाम का काम करने के दौरान रामलीला देखकर उससे प्रभावित हुए थे और गांव लौटे आये। न हिंदी आती थी, न अंग्रेजी, सिर्फ अपनी मातृभाषा भोजपुरी जानते थे। वह तो देश-दुनिया को भी नहीं जानते थे ।
बस, अपने आसपास के समाज के मन-मिजाज को जानते थे, समझते थे। जो जानते थे, उसी को साधने में लग गये। मामूली, उपेक्षित, वंचित लोगों को मिलाकर टोली बना लिये और साधारण-सहज बातों को रच लोगों को सुनाने लगे, बताने लगे। इन 100 सालों के सफर में जो चमत्कार हुआ, वह अब दुनिया जानती है।
उतनी उमर में सीखने की प्रक्रिया आरंभ कर भिखारी ने दो दर्जन से अधिक रचनाएं कर दीं। वे रचनाएं अब देश-दुनिया में मशहूर हैं।
क्या भिखारी अब सिर्फ भोजपुरी के हैं?
नहीं
वो तो उस परिधि से निकल अब पूरे हिंदी इलाके के लिए एक बड़े सांस्कृतिक नायक और अवलंबन हैं। देश-दुनिया के रिसर्चर उनके उठाये विषयों पर, उनकी रचनाओं पर रिसर्च कर रहे हैं।
लोकनाटक
बिदेशिया, भाई-बिरोध, बेटी-बियोग या बेटि-बेचवा
कलयुग प्रेम, गबर घिचोर, गंगा स्नान (अस्नान), बिधवा-बिलाप, पुत्रबध, ननद-भौजाई, बहरा बहार, कलियुग-प्रेम, राधेश्याम-बहार, बिरहा-बहार, नक़ल भांड अ नेटुआ के
साथ ही
शिव विवाह, भजन कीर्तन: राम, रामलीला गान, भजन कीर्तन: कृष्ण, माता भक्ति, आरती, बुढशाला के बयाँ, चौवर्ण पदवी, नाइ बहार, शंका समाधान, विविध।
कालजयी भोजपुरिया
कहाँ है ?
किसे पता है ?
कोई नहीं जानता ।
मैं भूल गया था …शायद सभी भूले हैं ।
नमन आपको !
शत ! शत ! नमन