November 22, 2024

शरणार्थी यानि शरण में उपस्थित असहाय, लाचार, निराश्रय तथा रक्षा चाहने वाले व्यक्ति या उनके समूह को कहते हैं। इस प्रकार वह व्यक्ति विशेष या उनका समूह जो किसी भी कारणवश अपना घरबार या देश छोड़कर अन्यत्र शरणांगत हो जाता है, वह शरणार्थी कहलाता है। वहीं दूसरी तरफ कोई व्यक्ति अथवा समूह जो बिना नागरिकता प्राप्त किए किसी दूसरे देश में चोरी छिपे रहता हो और वहां के संसाधनों का अबैध रूप से दोहन करता हो वह घुसपैठी कहलाता है। इसे इस तरह समझ सकते हैं किसी की मजबूरी में उसे अपने घर आसरा देना और दूसरी तरफ कोई चोरी छिपे या जबरन हमारे घर पर कब्जा करे, यही है CAB और NRC…

सर्वप्रथम हम यह जान लें की भारतीय नागरिकता अधिनियम के अनुसार भारत की नागरिकता कैसे प्राप्त की जा सकती है?
१.जन्म
२.वंशानुगत क्रम
३.पंजीकरण
४.प्राकृतिक रूप से नागरिकता
५.यदि कोई व्यक्ति जिस देश में रहता है वह देश भारत में मिल जाता है।

भारतीय नागरिकता बिल में केंद्र सरकार का प्रस्तावित संशोधन लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत से पारित हो गया है। अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह विधेयक Citizenship Amendment Bill (CAB) कानून बनकर लागू हो जाएगा। यह बिल संसद के दोनों सदनों में पारित हो गया है। अब यह कानून बन जाएगा और इसके बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दू सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता निष्कंटक हो जाएगा।

अब हम ये जानने की कोशिश करेंगे की नागरिकता संशोधन बिल वास्तव में क्या है?

नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया गया है, जिससे नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव किया जा सके।

१. इस बिल के संशोधन से बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिन्दु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों के लिए बगैर वैध दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता हासिल करने का रास्ता साफ हो जाएगा।

२. निवास करने की समय सीमा भी कम हो जाएगी। भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए ११ साल से घटाकर ६ साल करने का इसमें प्रावधान है।

नागरिकता (संशोधन) विधेयक १९ जुलाई २०१६ को लोकसभा में पेश किया गया था। १२ अगस्त २०१६ को इसे संयुक्त संसदीय समिति को सौंप दिया गया था। समिति ने इस साल जनवरी २०१९ में इस पर अपनी रिपोर्ट दी थी। इसके बाद नौ दिसंबर २०१९ को यह विधेयक दोबारा लोकसभा में पेश किया गया, जहां से यह पारित हो गया।

११ दिसंबर २०१९ को यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया और वहां भी यह पारित हो गया। सीधी सी बात है की जब यह विधेयक संसद से पारित हो चुका है तो अब राष्ट्रपति के हस्ताक्षर और राजपत्र में प्रकाशित होने के बाद अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी प्रवासी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे।

इसके अलावा इन तीन देशों के सभी छह धर्मों के लोगों को भारतीय नागरिकता पाने के नियम में भी छूट दी जाएगी। ऐसे सभी प्रवासी जो छह साल से भारत में रह रहे होंगे, उन्हें यहां की नागरिकता मिल सकेगी।

अब हम यह देखते हैं की आखिर इस संशोधन विधेयक पर विवाद क्या है?

१. इस विधेयक में गैरकानूनी प्रवासियों के लिए नागरिकता पाने का आधार सिर्फ और सिर्फ धर्म है और यही प्रस्ताव पर विवाद का कारण है।

२. गृह मंत्रालय ने वर्ष २०१८ में अधिसूचित किया था कि सात राज्यों के कुछ जिलों के संग्राहक भारत में रहने वाले पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए ऑनलाइन आवेदन स्वीकार कर सकते हैं। राज्यों और केंद्र से सत्यापन रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद उन्हें नागरिकता दी जाएगी। इनमें
छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तरप्रदेश और दिल्ली में नागरिकता अधिनियम, १९५५ की धारा ५ और ६ के तहत प्रवासियों को नागरिकता और प्राकृतिक प्रमाणपत्र प्रदान करने के लिये कलेक्टरों को शक्तियां दी हैं। पिछले वर्ष गृह मंत्रालय ने नागरिकता नियम, २००९ की अनुसूची १ में बदलाव भी किया था।

नए नियमों के तहत भारतीय मूल के किसी भी व्यक्ति द्वारा निम्नलिखित मामलों पर नागरिकता की मांग करते समय अपने धर्म के बारे में घोषणा करना अनिवार्य होगा।

१. भारतीय नागरिक से विवाह करने वाले किसी व्यक्ति के लिए।
२. भारतीय नागरिकों के ऐसे बच्चे जिनका जन्म विदेश में हुआ हो।
३. ऐसा व्यक्ति जिसके माता -पिता भारतीय नागरिक के रूप में पंजीकृत हों।
४. ऐसा व्यक्ति जिसके माता -पिता में से कोई एक स्वतंत्र भारत का नागरिक रहा हो।

अब थोड़ी जानकारियां NRC के बारे में यानी राष्ट्रीय नागरिक पंजी के बारे बटोर लेते हैं, भारत के राष्ट्रीय नागरिक पंजी में उन भारतीय नागरिकों के नाम हैं जो असम में रहते हैं। इसे भारत की जनगणना १९५१ के बाद तैयार किया गया था। जो लोग असम में बांग्लादेश बनने के पहले (२५ मार्च १९७१ के पहले) आए है, केवल उन्हें ही भारत का नागरिक माना जाएगा।

असम भारत का पहला ऐसा राज्य है जिसके पास राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC ) है। नागरिकता हेतु प्रस्तुत लगभग दो करोड़ से अधिक दावों (इनमें लगभग ३८ लाख लोग ऐसे भी थे जिनके द्वारा प्रस्तुत दस्तावजों पर संदेह था) की जाँच पूरी होने के बाद न्यायालय द्वारा एन.आर.सी. के पहले मसौदे को ३१ दिसंबर २०१७ तक प्रकाशित करने का आदेश दिया गया था। ३१ दिसंबर २०१७ को बहु-प्रतीक्षित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का पहला ड्राफ्ट प्रकाशित किया गया। कानूनी तौर पर भारत के नागरिक के रूप में पहचान प्राप्त करने हेतु असम में लगभग ३.२९ करोड आवेदन प्रस्तुत किये गए थे, जिनमें से कुल १.९ करोड़ लोगों के नाम को ही इसमें शामिल किया गया है।

असम में नागरिक पंजी को आखिरी बार १९५१ में अद्यतन किया गया था। उस समय असम में कुल ८० लाख नागरिकों के नाम प्ंजीकृत किए गये थे।

अश्विनी राय ‘अरूण’

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