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वर्ष १९६० में आई अशोक कुमार और राजेंद्र कुमार स्टारर फिल्म कानून कोर्टरूम ड्रामा जॉनर की पहली फिल्म है, जिसे बी.आर. चोपड़ा ने बनाया है। इस लिखा है अख्तर उल ईमान और सी जे पाबरी ने। इस फिल्म की शुरुवात एक शर्त से होती है, ‘तुम स्वयं खून करो और बच कर दिखाओ’। राजेंद्र कुमार इस फिल्म में एक वकील बने हैं, जो एक निर्दोष व्यक्ति को बचाने के लिए सरकारी वकील के पद से त्यागपत्र दे उसकी पैरवी करते हैं, जिसमें वह अपना सब कुछ खो देते हैं। इस केस की सुनवाई जज के किरदार में अशोक कुमार ने बेहतरीन काम किया है। यह किरदार जज होने के बाद भी एक खूनी है, अपराधी है। इस फिल्म में सीधे तौर पर दिखाया गया है कि किस तरह झूठे सबूतों और गवाहों की बुनियाद पर किसी निर्दोष को फांसी के फंदे तक पहुंचाया जा सकता है। इस फिल्म की एक और खास बात यह रही कि यह हिंदी सिनेमा की पहली बिना गीत वाली फिल्म भी है।

अपनी बात…

सबूत आधारित न्याय व्यवस्था को आईना दिखाती यह फिल्म कानून व्यवस्था के गाल पर चटकन के समान है। इस फिल्म ने यह दिखाया है कि कैसे सबूत के आधार पर कोई बेगुनाह फांसी के तख्ते पर झूल जाता है और वहीं बिना सबूत के कितनी आसानी से छूट भी जाता है। कहर जाता है कि फिल्में समाज का आईना होती हैं, इसलिए समाज में कानून के साथ होने वाले खिलवाड़ को आधार बना कर हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक से एक बेहतरीन फिल्में बनाई गई हैं और हमारे देश में ऐसी फिल्मों की शुरुआत ‘कानून’ से हुई थी। आज हम आपको कानून को अंधा बताने वाली इस फिल्म को देखने की पैरवी करते हैं, जो अनेकों सवाल खड़ी करती है जैसे; आंखों देखा हर बार सही नहीं होता, कभी कभी उसके उलट भी हो सकता है। कोर्ट में दिखाए सबूत बनाए भी जा सकते है या गलती से बन बिगड़ भी सकते हैं। बिना सबूत के छूटा खूनी और भी अनेकों अपराध कर सकता है, तो सबूत के आधार पर बेगुनाह को सजा हो सकती है और यह सजा उसके पूरे परिवार को भुगतना पड़ सकता है आदि आदि।

कलाकार…

राजेन्द्र कुमार, अशोक कुमार, नन्दा, नाना पालसिकर, मनमोहन कृष्णा, महमूद, शशि कला, जीवन, शुभा खोटे, मूलचंद, जगदीश राज आदि

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