December 3, 2024

अदम्य साहस, असाधारण इच्छाशक्ति और शारीरिक बल के प्रतीक अमर सिंह राठौड़ का जन्म ११ दिसम्बर, १६१३ को मारवाड़ के राजा गज सिंह के यहां हुआ था। जहां एक तरफ राजा मुगल शासन के अधीन था, वहीं अमर सिंह राठौड़ अपने डर और अपने फैसले के लिए प्रसिद्ध थे। वह जन्म से ही एक स्वतंत्र व्यक्ति थे और स्वतंत्र रूप में ही २५ जुलाई, १६४४ को हजारों मुगलिया सैनिकों को मारकर संधि के दौरान धोखे से वीरगति को प्राप्त हुए।

इतिहास…

बात उन दिनों की है, जब पूरे भारत पर मुगल शासक शाहजहां का शासन था। मुगल शासन के अधीन राजा गज सिंह मारवाड़ क्षेत्र पर शासन करते थे। एक बार जब उनके क्षेत्र के अंदर मुगलिया खजाने को डाकू जालिम सिंह ने लूट लिया और पकड़ा नहीं गया। मुगल बादशाह ने राजा गज सिंह को एक कड़ा संदेश भिजवाया कि डाकू को लूट के साथ जल्द से जल्द पेश किया जाए अथवा लूट के धन के बराबर धन मारवाड़ राज्यकोश से उसकी पूर्ति की जाए।

राजा ने लूट के धन की पूर्ति तो कर दी मगर डाकू जालिम सिंह को पकड़ने के लिए अपने बड़े पुत्र अमरसिंह राठौड़ को रवाना किया। डाकू की खोज में अमर सिंह ने राज्य के हर हिस्से में खोज शुरू की मगर डाकू का कहीं पता नहीं चल सका मगर प्रजा में उसकी नेकनामी और सेवा की बातें सुनकर अमर सिंह को बेहद आश्चर्य होता, वे उससे प्रभावित हो गए। बड़ी मेहनत और कई माह के कठोर परिश्रम के बाद महान योद्धा और एक देशभक्त डाकू जालिम सिंह से अमर सिंह का मुकाबला हो ही गया। एक बड़ी लड़ाई के बाद जालिम सिंह हार गया मगर अमर सिंह ने उसे आगे डकैती ना करने के शर्त पर अपनी मित्रता और सजा माफी का उपहार दे दिया, लेकिन उनके पिता राजा गज सिंह ने उन्हें मुगलों से एक डाकू को बचाने के कारण राज्य और राजगद्दी दोनों से ही निर्वासित कर दिया। अब दोनों मित्र निर्वासित जीवन बिताने के लिए अर्जुन सिंह के राज्य में चले गए, जो अमर सिंह का ससुराल भी था। अर्जुन सिंह भी मुगल बादशाह का चापलूस था, उसने कई तरह से अमर सिंह को मुगल शासन के अधीन कार्य करने का लालच दिया मगर अमर सिंह अपने आप को गुलाम बनाना नहीं चाहते थे, मगर जब अर्जुन सिंह ने उनकी बेटी की शादी की बात की तो वे टूट गए और शाहजहां की दिल्ली सल्तनत में शामिल हो गए, जहाँ उन्होंने शाहजहां को अपनी वीरता से प्रभावित किया, जिससे उन्हें नागौर का जागीरदार बना दिया गया।

सम्राट के भाई सलाबत खान, राज्य में अमर सिंह राठौड़ के उत्थान से जलता था और अमर सिंह को बदनाम करने का अवसर की प्रतीक्षा कर रह था। उसे यह मौक़ा जल्द ही मिल गया। अमर सिंह की अनुपस्थिति को सलाबत खान ने एक मुद्दे के रूप में इतना बढ़ा दिया कि शाहजहां ने सलाबत को अमर सिंह को दंड देने का आदेश दिया। इसका फायदा उठाते हुए सलाबत ने अमर सिंह को धमका कर उनकी दूसरी पत्नी चंद्रावती या उनकी बेटी, दोनों में से किसी एक को सौंपने का हुक्म सुनाया और उसी वक्त दंड का भुगतान करने का आदेश सुनाया। सलाबत ने यह भी चेतावनी दी कि वह अमर सिंह को बिना दंड का भुगतान किये उन्हें जाने नहीं देगा। अमर सिंह ने अपनी तलवार बाहर निकाली और सलाबत का पीछा करते हुए राज दरबार तक आ पहुंचे और बादशाह के सामने ही सर धड़ से अलग कर उसे मौके पर ही मौत के घाट उतार दिया। शाहजहां इस घटना से अचंभित हो गया और अमर सिंह को मारने के लिए अपने सैनिकों को आदेश दिया। हालांकि, बहादुर अमर ने अपना युद्ध कौशल दिखाया और उन सभी को मार डाला और अपने घोड़े पर सवार होकर किले से घोड़े सहीत छलांग लगा दी और किले से बाहर निकल कर सुरक्षित स्थान पर लौट गए।

अगले दिन दरबार में बादशाह ने घोषणा करवा दी कि जो भी अमर सिंह को जिंदा या मुर्दा पेश करेगा उसे अमर सिंह के जागीर का जागीरदार बना दिया जाएगा। परंतु कोई भी अमर सिंह राठौर के साथ दुश्मनी मोल लेने के लिए तैयार नहीं था, क्योंकि उन्हें सिर्फ एक दिन पहले ही अमर सिंह क्रोध का सामना करना पड़ा था। अर्जुन सिंह जो अमर सिंह के साले थे, ने लालच में आकर इस चुनौती को स्वीकार कर लिया। अर्जुनसिंह ने अमरसिंह से कहा कि शाहजहां को अपनी गलती का एहसास हो गया है, और वह अमर सिंह जैसा योद्धा नहीं खोना चाहता। अमर सिंह को शुरूआत में इस बात पर विश्वास नहीं था, परन्तु जल्द ही वे अर्जुनसिंह के विश्वासघात की कला के झांसे में आ गए।

शाहजहां के दरबार के सामने एक छोटा दरवाजा खड़ा किया गया, जिससे अमर सिंह को दरबार में प्रवेश करने के लिए उसके सामने झुकना पड़े। अमर सिंह बादशाह के सामने झुकने के लिए तैयार नहीं था और अर्जुन सिंह ने ये जान लिया और उसने अमर सिंह को पहले प्रवेश करने कहा। अमर सिंह ने उसकी सलाह मान प्रवेश करने को उत्सुक हुआ कि अर्जुन सिंह ने अमर सिंह के पीठ पर खंजर घोंप दिया। अमर सिंह वहीं पर वीरगति को प्राप्त हो गए। बाद में शाहजहां ने अर्जुनसिंह को भी मार दिया। अमर सिंह की मृत्यु की सूचना उनकी दूसरी पत्नी चंद्रावती और पुत्र राम सिंह (पहली पत्नी से) के नेतृत्व में राजपूत सैनिकों ने किले पर हमला कर दिया, जहां अमर सिंह का मृत शरीर पड़ा था। वहां हजारों मुगल सैनिकों ने राजपूत बलों को घेर लिया मगर बहादुर राजपूत बलों ने उनका सामना तब तक बेहद बहादुरी से किया जब तक कि अमर सिंह के शरीर को किले से दूर नहीं ले जाया गया। यह हार मुगल शासन की सबसे बड़ी हार में से एक थी, क्योंकि यह लड़ाई बादशाह के किले में हुई थी। बाद में, किले के उस हिस्से का वह संकीर्ण दरवाजा “अमर सिंह दरवाजा” के रूप में जाना जाने लगा, क्योंकि यह मुगल सेना के समक्ष राजपूत बहादुरी का प्रतीक था। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि शाहजहां ने स्थायी रूप से वह दरवाजा बंद करने का आदेश दिया, क्योंकि वह उसे राजपूत बलों के हाथों से उनकी हार की याद दिलाता था। आगरा के किले का वह द्वार ‘अमर सिंह गेट’ के रूप में नामित किया गया जो आगरा में एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।

फिल्म…

अमर सिंह राठौर पर आधारित वर्ष १९७० में ‘वीर अमर सिंह राठौड़’ नामक फिल्म बनाई गई थी, जो राधाकांत द्वारा निर्देशित थी। इसमें देव कुमार, कुमकुम और ज़ब्बा रहमान ने अभिनय किया था। यह फिल्म ब्लैक एंड व्हाईट में बनी थी।

इसी विषय पर एक और फिल्म गुजराती भाषा में बनी थी। इसमें मुख्य भूमिका के रूप में गुजराती सुपर स्टार उपेंद्र त्रिवेदी ने निभाई थी।

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