१८ मई, १९७४ का वो एतिहासिक दिन, जिसने भारत को दुनिया के परमाणु संपन्न देशों की कतार में ला खड़ा किया। भारत ने आज ही के दिन राजस्थान के पोखरण में अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया था। परीक्षण को ‘स्माइलिंग बुद्धा’ का नाम दिया गया था। यह पहला मौका था जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा किसी और देश ने परमाणु परीक्षण करने का साहस किया। इस परीक्षण की प्रस्तावना तब लिखी गई थी जब वर्ष १९७२ में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र का दौरा किया और वहां के वैज्ञानिकों को परमाणु परीक्षण के लिए संयंत्र बनाने की मौखिक इजाज़त दे दी। परीक्षण के दिन से पहले तक इस पूरे ऑपरेशन को गोपनीय बना कर रखा गया था। इस ऑपरेशन की अगुवाई बीएआरसी के निदेशक डॉक्टर राजा रामन्ना ने की और उनकी टीम में डॉक्टर अब्दुल कलाम भी शामिल थे।
मगर हमने जिस आसानी से यह बात यहाँ कही है अथवा इस महान कार्य के लिए जितनी आसानी से हमने श्रीमती गाँधी, डॉक्टर राजा रामन्ना आदि को श्रेय प्रदान किया है वे उसके हकदार तो हैं मगर इसके पीछे जो छूट गए अथवा अंधेरे में कहीं खो गए हैं आईए हम उन्हें उजाले की ओर ले आएं और उनके द्वारा किए इस महान कार्य के लिए उन्हें श्रध्येय नमन करें…
वर्ष १९४४ से वर्ष १९६० तक के शुरुआती कार्यक्रम का इतिहास…
भारत ने होमी जहाँगीर भाभा के नेतृत्व में सन १९४४ में टाटा मूलभूत अनुसन्धान संस्थान में अपने परमाणु कार्यक्रम की शुरुआत की। भौतिकशास्त्री राजा राम्मना ने परमाणु अस्त्रों के निर्माण संबंधी कार्यक्रम में अपना सक्रिय योगदान दिया, उन्होंने परमाणु हथियारों की वैज्ञानिक तकनीक को अधिकाधिक उन्नत किया और बाद में पोखरण -१ परमाणु कार्यक्रम के लिए गठित पहली वज्ञानिको की टोली के प्रमुख बने।
वर्ष १९४७ के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने परमाणु कार्यक्रम की जिम्मेदारी होमी जे भाभा के काबिल हाथो में सौपीं। १९४८ में पास हुए “परमाणु उर्जा एक्ट” का मुख्य उद्देश्य इसका शांतिपूर्ण विकास करना था। भारत शुरुआत से ही परमाणु अप्रसार संधि के पक्ष में था मगर उस पर हस्ताक्षर नहीं कर सका।
वर्ष १९५४ मे भाभा ने परमाणु कार्यक्रम को शस्त्र निर्माण की तरफ मोड़ा तथा दो महत्वपूर्ण बुनियादी ढ़ांचो पर ध्यान दिया। पहला ट्रोमबे परमाणु उर्जा केंद्र, मुंबई की स्थापना तथा दूसरा एक सरकारी सचिवालय, परमाणु उर्जा विभाग। इसके पहले सचिव भाभा रहे जिनके नेतृत्व में १९५८ तक उर्जा के क्षेत्र में काफी तेजी से कार्य हुआ। १९५९ के आते आते DAE को रक्षा बजट का एक तिहाई भाग स्वीकृत हो गया था। वर्ष १९५४ में भारत ने संयुक्त राष्ट्र तथा कनाडा के साथ मौखिक रूप से परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग पर सहमती कर ली थी। संयुक्त राष्ट्र और कनाडा ट्रोम्बे में सर्कस रिएक्टर के निर्माण में सहयोग देने पर राजी भी हो गए, सर्कस रिएक्टर एक प्रकार से भारत और संयुक्त राष्ट्र के मध्य परमाणु आदान प्रदान की शुरुआत थी। सर्कस रिएक्टर पूरी तरह से शांतिपूर्ण उपयोग के लिए बना था तथा इसका उद्देश्य प्लूटोनियम युक्ति को विकसित करना था। जिसके कारण नेहरु ने कनाडा से परमाणु ईंधन लेने से इन्कार कर दिया तथा स्वदेशी नाभिकीय ईंधन चक्र विकसित करने की ओर बल दिया।
जुलाई १९५८ में नेहरु ने फ़ीनिक्स परियोजना जिसका लक्ष्य साल भर में २० टन नाभिकीय ईंधन बनाने का था की शुरुआत की जो की सर्कस रिएक्टर की आवश्यक क्षमता के अनुसार ईंधन प्रदान कर सके। एक अमेरिकी कंपनी विट्रो इंटरनेशनल द्वारा बनाई गयी यह इकाई प्युरेक्स प्रक्रिया का उपयोग करती थी। इस इकाई का निर्माण कार्य ट्रोम्बे में २७ मार्च, १९६१ में चालु हुआ तथा १९६४ के मध्य तक यह बन कर तैयार हो गया था।
नाभिकीय परियोजना अपनी पूर्ति की ओर आगे बढ़ रही थी, तभी १९६० में नेहरु ने इसे निर्माण की ओर मोड़ने की सोची तथा भारत में भी नाभिकीय बिजली घर की अपनी परिकल्पना को मूर्त रूप देते हुए अमेरिकी कंपनी वेस्टिंग हाउस इलेक्ट्रिक को भारत का पहला नाभिकीय बिजली घर, महाराष्ट्र के तारापुर में बनाने का जिम्मा सौपा। केनेथ निकोल्स जो कि अमेरिकी सेना में अभियंता थे ने नेहरु से मुलाकात की, यही वो वक्त था जब नेहरु ने भाभा से नाभिकीय हथियारों को बनाने में लगने वाले वक्त के बारे में पुछा तब भाभा ने १ वर्ष का अनुमानित समय माँगा।
१९६२ के आते आते परमाणु कार्यक्रम धीमी रफ़्तार से ही सही लेकिन चल रहा था। नेहरु भी भारत-चीन युद्ध के चलते जिसमे भारत ने चीन से अपनी जमीन खोयी थी, परमाणु कार्यक्रम से विचलित हो गए थे। नेहरु ने सोवियत संघ से मदद की अपील की लेकिन उसने क्यूबाई मिसाइल संकट के चलते मदद करने में अपनी असमर्थता जाहिर की। तब भारत इस निष्कर्ष पर पंहुचा की सोवियत संघ विश्वास योग्य साथी नहीं है, तब नेहरु ने दृढ संकल्पित होकर, किसी और के भरोसे बैठने के बजाय खुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने का निश्चय किया जिसका खाका वर्ष १९६५ में भाभा को दिया गया जिन्होंने राजा रमन्ना के अधीन तथा उनकी मृत्यु के बाद परमाणु हथियार कार्यक्रम को आगे बढाया।
वर्ष १९६७ से वर्ष १९७२ तक के
हथियारों के विकास का इतिहास…
भाभा अब आक्रामक तरीके से परमाणु हथियारों के लिए पैरवी कर रहे थे और भारतीय रेडियो पर कई भाषण दिए। वर्ष १९६४ में, भाभा ने भारतीय रेडियो के माध्यम से भारतीय जनता को बताया कि “इस तरह के परमाणु हथियार उल्लेखनीय सस्ते होते हैं” और अमेरिकी परमाणु परीक्षण कार्यक्रम की किफायती लागत का हवाला देते हुए अपने तर्क का समर्थन किया। परमाणु कार्यक्रम आंशिक रूप से धीमा हो गया जब लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने।१९६५ में, शास्त्री जी को पाकिस्तान के साथ एक और युद्ध का सामना करना पड़ा।शास्त्री जी ने ,परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख के रूप में भौतिक विज्ञानी विक्रम साराभाई को नियुक्त किया लेकिन क्योंकि उनके गांधीवादी विश्वासों की कारण साराभाई ने सैन्य विकास के बजाय शांतिपूर्ण उद्देश्यों की ओर कार्यक्रम का निर्देश किया। १९६७ में , इंदिरा गांधी भारत की प्रधानमंत्री बनी और परमाणु कार्यक्रम पर काम नए उत्साह के साथ फिर से शुरू हो गया। होमी सेठना, aएक रासायनिक इंजीनियर ने , प्लूटोनियम ग्रेड हथियार के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जबकि रमन्ना ने पूरे परमाणु डिवाइस का डिज़ाइन और निर्माण करवाया। पहले परमाणु बम परियोजना में, अपनी संवेदनशीलता की वजह से, ७५ से अधिक वैज्ञानिकों नें काम नहीं किया। परमाणु हथियार कार्यक्रम अब यूरिनियम के बजाए प्लुटोनीयम के उत्पादन की दिशा में निर्देशित किया गया था।
वर्ष १९६८-६९ के मध्य, पी.के. आयंगर ने तीन सहयोगियों के साथ सोवियत संघ का दौरा किया और मास्को, रूस में परमाणु अनुसंधान सुविधाओं का दौरा किया। अपनी यात्रा के दौरान आयंगर प्लूटोनियम रिएक्टर से प्रभावित हुए। भारत लौटने पर, आयंगर ने प्लूटोनियम रिएक्टरों का, जनवरी १९६९ में, भारतीय राजनीतिक नेतृत्व द्वारा अनुमोदित विकास के बारे में निर्धारित किया था। गुप्त प्लूटोनियम संयंत्र पूर्णिमा के रूप में जाना जाता था,और निर्माण का कार्य मार्च १९६९ में शुरू हुआ। संयंत्र के नेतृत्व में आयंगर, रमन्ना, होमी सेठना और साराभाई शामिल थे।
और फिर आया वो ऐतिहासिक दिन यानी १८ मई, १९७४ का दिन…
स्माइलिंग बुद्धा या पोखरण-१ जो भारत द्वारा किये गए प्रथम सफल परमाणु परीक्षण का कूटनाम है, का सफल परीक्षण पोखरण (राजस्थान) में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों की निगरानी में किया गया। पोखरण -१, संयुक्त राष्ट्र के पांच स्थायी सदस्य देशों के अलावा किसी अन्य देश द्वारा किया गया पहला परमाणु हथियार का परीक्षण था। वैसे तो अधिकारिक रूप से भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे शांतिपूर्ण परमाणु बम विस्फोट बताया, लेकिन वास्तविक रूप से यह त्वरित परमाणु कार्यक्रम ही था।
बहुत सुंदर और बेहतर प्रयास । सादर ।