Sunday, May 25, 2025
Homeअश्विनी राय "अरुण"आलेखमर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम

ॐ रां रामाय नमः

मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, महाराजा दशरथ और महारानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र, माता सीता के सुहाग व भैया भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न के भ्राता थे। पवनपुत्र हनुमान उनके परम भक्त हैं। लोक कल्याण के लिए लंका के राजा रावण का वध उन्होंने किया था। उनकी प्रतिष्ठा मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में इसलिए है क्योंकि उन्होंने मर्यादा के पालन के लिए राज्य, मित्र, माता-पिता और पत्नी तक का त्याग कर दिया था।

ॐ श्री रामचन्द्राय:‌‌नमः

उनके अनन्य नामों में से व्रिशा, वैकर्तन(सुर्य का अन्श), श्रीरामचंद्रजी, श्रीदशरथसुतजी, श्रीकौशल्यानंदनजी, श्रीसीतावल्लभजी, श्रीरघुनन्दनजी, श्रीरघुवरजी, श्रीरघुनाथजी, ककुत्स्थकुलनंदन आदि प्रमुख नाम हैं।

 

नाम-व्युत्पत्ति एवं अर्थ…

‘रम्’ धातु में ‘घञ्’ प्रत्यय के योग से ‘राम’ शब्द निष्पन्न होता है। ‘रम्’ धातु का अर्थ रमण (निवास, विहार) करने से सम्बद्ध है। वे प्राणीमात्र के हृदय में ‘रमण’ (निवास) करते हैं, इसलिए ‘राम’ हैं तथा भक्तजन उनमें ‘रमण’ करते (ध्याननिष्ठ होते) हैं, इसलिए भी वे ‘राम’ हैं। *”रमते कणे कणे इति रामः”।* ‘विष्णुसहस्रनाम’ पर लिखित अपने भाष्य में आद्य शंकराचार्य ने पद्मपुराण का उदाहरण देते हुए कहा है कि नित्यानन्दस्वरूप भगवान् में योगिजन रमण करते हैं, इसलिए वे ‘राम’ हैं।

 

आदि राम…

कबीर साहेब जी आदि राम की परिभाषा बताते हैं कि आदि राम वह अविनाशी परमात्मा है जो सब का सृजनहार व पालनहार है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और आकाश काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस कोटि देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। जो पूर्ण मोक्षदायक व स्वयंभू है।

“एक राम दशरथ का बेटा, एक राम घट घट में बैठा, एक राम का सकल उजियारा, एक राम जगत से न्यारा”।।

 

अवतारी रूप में प्राचीनता…

वैदिक साहित्य में ‘राम’ का उल्लेख प्रचलित रूप में नहीं मिलता है। ऋग्वेद में केवल दो स्थलों पर ही ‘राम’ शब्द का प्रयोग हुआ है (१०-३-३ तथा १०-९३-१४)। उनमें से एक भी जगह काले रंग (रात के अंधकार) के अर्थ में तथा शेष एक जगह व्यक्ति के अर्थ में प्रयोग हुआ है; लेकिन वहां भी उनके अवतारी पुरुष या दशरथ के पुत्र होने का कोई संकेत नहीं है। यद्यपि नीलकण्ठ चतुर्धर ने ऋग्वेद के अनेक मन्त्रों को स्वविवेक से चुनकर उनके रामकथापरक अर्थ किये हैं, परन्तु यह उनकी निजी मान्यता है। स्वयं ऋग्वेद के उन प्रकरणों में प्राप्त किसी संकेत या किसी अन्य भाष्यकार के द्वारा उन मंत्रों का रामकथापरक अर्थ सिद्ध नहीं हो पाया है। ऋग्वेद में एक स्थल पर ‘इक्ष्वाकुः’ (१०-६०-४) का तथा एक स्थल पर ‘दशरथ’ (१-१२६-४) शब्द का भी प्रयोग हुआ है। परन्तु उनके राम से सम्बद्ध होने का कोई संकेत नहीं मिल पाता है।

ब्राह्मण साहित्य में ‘राम’ शब्द का प्रयोग ऐतरेय में दो स्थलों पर (७-५-१{=७-२७} तथा ७-५-८{=७-३४}) हुआ है; परन्तु वहाँ उन्हें ‘रामो मार्गवेयः’ कहा गया है, जिसका अर्थ आचार्य सायण के अनुसार ‘मृगवु’ नामक स्त्री का पुत्र है। एक स्थल पर ‘राम’ शब्द का प्रयोग हुआ है (४-६-१-७)। यहां ‘राम’ यज्ञ के आचार्य के रूप में है तथा उन्हें ‘राम औपतपस्विनि’ कहा गया है। तात्पर्य यह कि प्रचलित राम का अवतारी रूप वाल्मीकीय रामायण एवं पुराणों की ही देन है।

श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः।।

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