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नई आशा जगाकर मन में

किसको हो भरमाए तुम?

बीते वर्ष कुछ ना कर पाए

कहो! इस बार क्यों आए तुम?

 

सुनो! एक समय वह भी था,

जब उमंग से मन फड़कता था।

जोश भी था, हिम्मत भी थी,

हर बात पर मैं ताल पटकता था।

 

अब ना तो उमंग ही उठती है,

ना तो अब जोश ही टिकता है।

हम किस्मत के इतने अभागे हैं,

हर बार तू भी हांथ झटकता है।

 

इतना निर्मम निर्णय लेने पर,

क्यों लाज ना आई तुमको?

इस अभागे पर क्या बीतेगी,

तनिक दया भी ना आई तुमको।

 

एक बार ठुकराकर बोलो

पुनः क्यों अपनाते हो?

अभागे को छलने खातिर

हर बार क्यों चले आते हो?

 

माना तुम्हारा आना निश्चित है,

सार सिखाना भी निश्चित है।

पर एक बार तो यह जान लेते,

क्या सीखने को वो दीक्षित है?

 

मुड़ कर एक बार तो देखो,

कितनी आँखें पथराई हैं।

पंख लगा तुम उड़ जाओगे,

हमारे आगे बड़ी सी खाई है।

 

तुमसे आगे कोई ना निकलेगा

फिर भी तुम इतने घबराए हो।

अशक्त के भाग्य को छलने,

बोलो नूतन! क्यों आए हो?

 

मित्र! तुम्हारे नियमों का

हम तो पालन ना कर पाएंगे।

करना हमें तुम क्षमा वत्सर!

हम अनुशासित ना हो पाएंगे।

 

माना, है हमारी भंगी हस्ती

हमको शुद्धि नहीं चाहिए।

अब्द! हम कृतार्थ ही ठीक हैं

हमको बुद्धि भी नहीं चाहिए।

 

नूतन से पुरातन बनकर

सच बोलो, ना पछताए हो।

अपनो के मन को छल कर,

कहो संवत्! क्या पाए हो?

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