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क्या खास है इसमें

इक मीठी सी चुसकी के सिवा

ना तो इसमें सुबह की

भीनी खुशबू का एहसास है

और ना ही शाम के

सोंधी महक का एहसास ही

तो क्या खास है

इस दोपहर की चाय में

है न खास

बहुत ही खास

ये भरी दोपहरी में

अकेलेपन की साथी है

तो कभी दोस्तों के साथ 

समय बिताने की खुशी

कभी मेहमानों के

मेज़बानी का मजा

तो कभी जलते बदन लिए

मेहमान बनने की सजा

अजी बड़ी खास है

मीठी सी चुसकी के सिवा भी

ये दोपहर की चाय है 

रिश्तों की दवा भी उनकी दुवा भी

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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