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विषय : अनजान राहें

लाख कठिन हो, मगर

इस पर गुज़र जाऊँगा।

हार कर अगर बैठा तो,

शायद मैं मर जाऊँगा।।

 

है अनअनजानी जानी तो क्या ?

चल रहे हैं न इसपर लोग।

कुछ आगे चल रहे हैं, तो

मैं भी पीछे लग जाऊंगा।।

 

कभी सोचा न था कि

इस राह निकल आऊंगा।

घर तो छोड़ दिया है मैंने,

अब मगर किधर जाऊँगा।।

 

अँधेरे बड़े बदमाश हैं,

मुझे जाने ही नहीं देते।

जिधर रौशनी जाएगी

मैं उधर ही हो आऊंगा।।

 

कोई याद ना करे, यह

रहेगी सदा मेरी यादों में।

अनजान सी इस तस्वीर में,

ऐसे ऐसे रंग भर जाऊंगा।।

 

मुझे राहों से मोहब्बत है,

मंजिल की क्या बात करूं।

कभी मैं ने भी तो सोचा था,

हर दिल से गुजर जाऊँगा।।

 

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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