April 19, 2025

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विषय – घमण्ड
दिनाँक – १०/१०/१९
विधा – काव्य

इस रंग बदलती दुनिया को
उजले होते देखा है

जलती आँखो को
बरबस ही बरसते देखा है

दुनिया को इशारों से हिलाते
उन हाथों को थरथराते भी देखा है

जो चला करते थे गुमान से
उन कदमों को काँपते देखा है

धड़कन बढ़ाती गर्जन को
कण्ठ में दबते देखा है

धन, पानी एक करते शख्स को
इक रोटी खातिर तरसते देखा है

क्या इतराना वक्त से, उस की
चाक पर सबको पीसते देखा है

बुझती राख को कभी
घमण्ड से धधकते देखा है

बाँध दी गई नदी को भी
कभी घमण्ड में उफनते देखा है

खुशी बांटने का कुछ प्रयत्न करो
दुःख बांटते तो कितनों को देखा है

अश्विनी राय ‘अरूण’

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