साहित्यिक प्रतियोगिता : १.१३
विषय : दर्द
दिनाँक : १३/११/१९
हर दर्द की दर से हम गुज़रते रहे,
हर चौखट पर चोट सहते रहे।
हर तरफ हमें लोग आज़माते रहे,
हर बार कसौटी पर वे झूलाते रहे॥
उजालों का हमने साथ दिया,
अंधेरे हमेशा साथ निभाते रहे।
जिनके लिए हम फूल बरसाते थे,
वे ही हमें सदा शूल धंसाते रहे॥
बचते रहे हम दुश्मन की चालों से,
जबकी दोस्त ही हमें सदा ठगते रहे।
राह जिनके हम ताका करते थे,
वे ही हमसे सदा मुकरते रहे॥
कौवे की चाल को समझने को,
वे बुलबुल के पर को कतरते रहे।
ग़म के दरिया में डूबे इस क़दर,
रंग जीवन के हर पल बदलते रहे॥
दाग़ तो दामन पे उनके भी थे,
वे छीटें हमेशा हम पर उड़ाते रहे।
राहों का दीदार कब मिल सका,
जबकी पाँवो में काँटें धंसते रहे॥
दर्द जीत के थे या हार के,
हम हमेशा उनके साथ खड़े रहे।
जब कभी जमाने की साथ थी हमें,
दम घूटने तक वे सदा दबाते रहे॥
अश्विनी राय ‘अरूण’