
इक रात की खामोशी
समंदर से गहरी थी
और कालिमा
काजल से भी काली थी
वक्त कुछ ऐसा था कि
उसने हर रिश्ते को,
रास्ते पर ला दिया और
कर्मों को छुपा लिया।
सन्नाटा पसरा था
अंदर भी, बाहर भी
अनजाने भय से
अंग·अंग सिहर उठे थे।
तभी चमचमाते जुगनू,
आकर पास खड़े हो गए।
वो टिमटिमा रहे थे
नाच रहे थे, गा रहे थे।।
उनकी चमक से
रात भी मुश्काई
कलौछ कम ना हुई
मगर डर को भगा गए।
ये उस रात की बात है
जब रात खामोश थी
बड़ी गहरी थी और
काजल से भी काली थी
और आज भी वे रौशन हैं
और मुझे रौशन किए हुए हैं,
उनका वो टिमटिमाना
आज अंतर्मन जगमगाता है।