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मेरा लक्ष्य पैसा है,

पता नहीं !

 

मेरा लक्ष्य अध्यात्म है,

यह भी पता नहीं!

 

मेरा लक्ष्य मेरा परिवार है,

मगर कौन सा…

 

मैं, मेरे माता पिता,

भाई बहन, मेरी पत्नी और

मेरे बच्चे,

ये सब या फिर

सिर्फ पत्नी और बच्चे।

 

मगर यह भी पता नहीं,

और कुछ समझ में भी नहीं आ रहा।

 

सबके साथ रहता हूं, तो

अपने को अकेला पाता हूं।

जब सबसे दूर चला जाता हूं,

तो सबकी याद आती है।

 

जब सबकी याद आती है, तो

पैसे पाने की, उसे कमाने की

जरूरत जान पड़ती है।

 

जब अकेला बैठता हूं, तो

अध्यात्म, दर्शन आदि के

बारे में सोचता हूं।

 

जबकि सच्चाई यह है कि

पैसा मुझे आकर्षित नहीं करता,

अध्यात्म की ओर

पत्नी झुकने नहीं देती,

उसे डर है कि

कहीं मैं साधु ना बन जाऊं।

मगर पैसे की मांग भी नहीं करती।

 

अजब गजब शौक पाल रखा है,

उनमें कुछ सपने भी हैं।

मैं जानता हूं,

वो कभी पूरे नहीं होंगे।

मगर शौक और सपने तो

दोनों ही अपने हैं।

ना शौक छूटता है और

ना ही सपने टूटते हैं।

 

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