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मोबाइल मेरी परछाई नहीं,

मेरे कल के काल का अंधेरा है।

पीठ पर लादे बैताल से 

पराक्रमी बिक्रम जैसे हारा है।

 

ऐसा क्या है इस फोन में

जो ये स्मार्ट कहलाता है

बुद्धू के हांथ से चलता है या

बुद्धू सबको बनाता है 

 

मेमोरी कितनी है इसकी

जो हर बात याद रखता है 

थोड़ी अपनी बुद्धि लगा दो 

लटकने ये लगता है 

 

सौ दो सौ जीबी वाले ने

इतनी धाक जमाई है कि 

करोड़ों जीबी पाकर भी

जान उससे तू क्यूं हारा है?

 

ना कभी ये खेलने देता

ना कभी ये हिलने देता

ना कुछ सोचने देता

ना ही कुछ करने देता

 

जैसे इसको हाथ लगाते हो

ये बचपन को चुराता है

जवानी को भी पता नहीं 

बुढ़ापा उस पर कब आता है 

 

मोबाइल मेरी परछाई नहीं,

इसलिए मैं सच कहता हूं,

ये मेरा नौकर मेरा चाकर है 

बस काम इससे करवाता हूं।

 

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