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जब कभी यह खिलते होंगे,

चिड़ियन भी सब चहकते होंगे।

बगियन तो बगियन है भाया,

लठियन तक यह महकते होंगे।।

 

लाल कहीं तो कहीं नीले·पीले,

ओसवन की बूंदों से गीले·गीले।

पत्तियन संग सब नाजुक कलियन 

हउवा से डलिए पर फुदकते होंगे।।

 

आज देखो कैसन मुरझाए से हैं, 

देखो कैसन यह सुखाए से हैं।

कहता हूं इनको बिखराना मत,

पखुड़ियन को तोड़ इतराना मत।।

 

अंतिम घड़ी त सबकर आएगी,

उह दिन जिनगी भारी हो जाएगी।

कहता हूं सम्हाल कर हाथ लगाना तुम,

लगाया तो इनको घाव दिलाना मत।।

 

पहले ही कहा है, यह भी हंसते होंगे,

डलियन पर जब अपने खिलते होंगे।

आज मुरझाए हुए हैं, सुखाए हुए हैं,

किरपा करना फिर से रुलाना मत॥

 

हो सके तो इनको उठा ले जाना,

दुलार से मर्तबान में अपने ठहराना।

दिन उनके भी तब पलट जाएंगे,

इत्र बनकर जब घर को महकाएंगे।।

 

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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