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ए दोस्त! आयेगा एक दिन ऐसा,

या आ गया है कहीं चुपके से

क्या तुम उसे देख पा रहे हो?

मुझे दिख तो नहीं रहा मगर

मैं महसूस कर पा रहा हूं।

 

जी हां! महसूस कर पा रहा हूं।

उस महा विनाश को आते हुए,

प्रलय को पांव पसारते हुए।

 

हां! चीत्कार की आवाज

अभी जरा धीमी है

मगर ध्यान लगाओ

वह आ तो रही है

कहीं दूर, बड़ी दूर है अभी

शायद किसी सभ्य इलाके में

 

कुछ तो हुआ होगा

मगर क्या?

 

एक संभावना जान पड़ती है

शायद इतने दिनों से

बंधक बनी वो प्रकृति

कहीं आजाद तो नहीं हो गई

 

कहीं उसने अपने अधिकार,

अपनी स्वतंत्रता को पाने की

बगावत तो शुरू नहीं कर दी।

 

हां! एक बार उसने कहा तो था

खुले मुख से तो नहीं मगर

दबी ज़बान में कहा था

 

हे तुच्छ मानव!

तुम्हारा अधिकार इस पृथ्वी पर

कभी था ही नहीं, क्योंकि

तुम इस पृथ्वी के नहीं हो

 

और होते भी तुम कैसे

तुम जीवन ही तो नहीं हो,

हां! तुम हो यह सही है

मगर एक जैविक घुसपैठिए

 

तुमने इस महान पृथ्वी को

एक प्रयोगशाला की भांति,

चेतना को संपत्ति और

सृष्टि को उपभोग बना रखा है

 

तुमने हमारे बारे में

कभी नहीं सोचा

हमारे किसी भी गुहार पर

ध्यान नहीं दिया,

उसे अनदेखा किया

या फिर सिरे से ठुकरा दिया।

 

उसकी आवाज धीमी जरूर थी

मगर तल्ख थी

उसकी बातों में चेतावनी भी थी

उसने कहा था,

कहीं ऐसा ना हो कि एक दिन,

हमारी सहनशक्ति जवाब दे दे।

और हमारे सब्र का बांध

टूट जाए और तुम..???

 

इतना कह वो चुप तो हो गई थी

मगर अभी कुछ तो कहना बाकी रह गया था,

मगर क्या ??

 

कहीं कुछ करने से पहले

उसने आगाह तो नहीं किया था

कहीं यह उसकी

आखिरी चेतावनी तो नहीं थी

 

कहीं उसने हमें

जैविक घुसपैठिए कहकर

वायरस तो नहीं कहा था?

कहीं उसने हमें

सेनेटाइज करने की बात

तो नहीं कही थी?

 

अगर उसने हमें

एलियन कहा होता तो

वो हमें भगाने की बात करती

मगर उसने तो हमें सीधे सीधे

जैविक घुसपैठिया कहा।

 

क्या सच में

हम जैविक घुसपैठिए हैं?

जैविक घुसपैठिए?

मगर जहां तक हमें पता है

हम तो एक महान जीवन हैं

धरती के सबसे बुद्धिमान जीव

प्रकृति के सबसे महान जीवन

उसके अपने सगे।

 

फिर उसने ऐसा क्यों कहा?

 

ये तो मैं जानता हूं कि

प्रकृति जिद्दी तो है।

कहीं वो इस पृथ्वी को

शुद्ध, सुंदर, साफ करने के लिए

इंसानों का अस्तित्व

समाप्त तो नहीं कर देगी।

 

कहीं उसने युद्ध का

बिगुल तो नहीं फूंक दिया है

कहीं नगाड़े तो नहीं बजा दिए

 

दुंदुभी की आवाज

एक बार हमने सुनी तो थी

शायद युद्ध के पहले की

वो पहली चेतावनी थी

 

फिर हमारे ये सारे शोध

ये सारी विद्याएं

ये सारे ज्ञान,

बटोरी गई सारी संपत्ति

ये ऐशो आराम की वस्तुएं

सारे घर मकान

ये सारी फैक्टरियां

इन सबका क्या होगा?

जब मानवता ही ना होगी।

 

हे ईश्वर! मदद कर

हे मां! हमारी रक्षा कर

प्रकृति को समझा,

उसे यह बता कि

हम तेरे ही बच्चे हैं

वो हमें जैविक घुसपैठिया ना कहे

हम भी उसी की भांति

जीवन ही तो हैं

हां! भटके हैं मगर

हम उसके अपने ही तो हैं।

 

 

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