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विषय : स्वर्णपदक

 

मैं जीतना चाहता हूँ,
अपने सपनो के लिए,
अपने अपनो के लिए…

मैं जीतना चाहता हूँ,
अपने देश के लिए,
उसके परिवेश के लिए…

मैं जीतना चाहता हूँ,
अपनी उस बहन के लिए,
जो नाज करे अपने भाई पर…

उस भाई के लिए,
जो कुछ कर जाए,
देख मुझे और निखर जाए…

मैं जीतना चाहता हूँ,
माँ के इंतजार के लिए,
उनके अंधे प्यार के लिए…

मैं जीतना चाहता हूं,
पिता के बकाए दुलार के लिए,
उनके सपनों के आकार के लिए…

मैं वह जीतना चाहता हूँ,
जो सोने की भले ना हो,
मगर उसकी आभा लिए हो…

मैं जीतना चाहता हूं,
एक स्वर्ण पदक,
अपने समाज के लिए…

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

 

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