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आंखो से बहते स्याही को
जज़्बात की कलम में ढाल कर
अपने धड़कन की कागज पर
बिखरे ख्वाब हर बार लिखता हूँ
पसंद या नापसंद की बात नहीं
हर सच को बार बार लिखता हूँ।

 

टूट जाते हैं हर बार ख्वाब मेरे,
उन्हें जोड़ कर फिर से
मै एक नया ख्वाब बुनता हूँ।

दिल में उठती हैं
कुछ खुरदुरी तो कुछ सख्त
कुछ श्वेत श्याम सी तो कुछ मस्त

 

कुछ चोट खाए हुए दिन तो
कुछ पथराई हुई रातें
ऐसी छिपी हुई हैं दिल में
खुरदुरी और पथरीली बातें
उन्हें उन्हीं से जोड़ तोड़कर
बेआवाज लिखता हूँ।

 

आज फिर से वही मिसरा
आज फिर से वही मुखड़ा
वही मिशाल लिखता हूँ।
छिपे चेहरे को बाहर लाने को
रीत को निहारने को
असलियत हर बार लिखता हूँ।

 

ऐनक को कलम तो कभी
जज्बात को आईना बना लेता हूं
हर बार नए राह बना लेता हूं
कभी की नहीं बादशाहों की चाकरी
कभी दी नहीं दराबारों को हाजरी
लिखना चाहा जब भी

 

अलग मिज़ाज़ बना लेता हूँ।

 

आंखो से बहते स्याही को
जज़्बात की कलम में ढाल कर
अपने धड़कन की कागज पर
बिखरे ख्वाब हर बार लिखता हूँ
पसंद या नापसंद की बात नहीं
हर सच को बार बार लिखता हूँ।

 

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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