सुबह हो गई, मोर्निग वॉक नहीं, दूध लेने जाना है। कहीं देरी हो...
कविता
कुछ ना कहकर सब कुछ कह जाने की कला ही कविता है
#UBIContest – 77 विषय : उड़ान संख्या २०२२ विधा : कविता शीर्षक : हौसलों...
सोने के लिए जागना घर की अटारी पर किताबें भरी हुई हैं मेरी रातों...
आंखो से बहते स्याही को जज़्बात की कलम में ढाल कर अपने धड़कन की...
नफरत से देखने लगे अथवा छूत मान लिए हैं। घर परिवार वाले अथवा...
एक दिन मेरी गांधी से भेंट हो गई चीरपरीचीत भाव से यूं ही मुस्कुरा...
आधी अधूरी आजादी हिंद सिसक सिसक कहता है, क्या ये जश्न इतना जरूरी है।...
एक पाति पत्नी के नाम तुम जब नहीं होती… ये हवाएं थम जाती हैं...
नगाड़े बज उठे दुंदुभी भी बज पड़ी है कुछ तो होने वाला है...
जमाने के रंग जब जब बदले, तुम भी यूं ही बदल गए। जवानी...