October 18, 2024

 

इक रात की खामोशी

समंदर से गहरी थी 

और कालिमा

काजल से भी काली थी

 

वक्त कुछ ऐसा था कि

उसने हर रिश्ते को,

रास्ते पर ला दिया और

कर्मों को छुपा लिया।

 

सन्नाटा पसरा था

अंदर भी, बाहर भी

अनजाने भय से 

अंग·अंग सिहर उठे थे।

 

तभी चमचमाते जुगनू,

आकर पास खड़े हो गए।

वो टिमटिमा रहे थे 

नाच रहे थे, गा रहे थे।।

 

उनकी चमक से

रात भी मुश्काई

कलौछ कम ना हुई

मगर डर को भगा गए।

 

ये उस रात की बात है 

जब रात खामोश थी

बड़ी गहरी थी और

काजल से भी काली थी

 

और आज भी वे रौशन हैं 

और मुझे रौशन किए हुए हैं,

उनका वो टिमटिमाना

आज अंतर्मन जगमगाता है।

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