मेरे बच्चे!
तुम जब बड़े हो जाना
तो सुन लेना अपनो की बात
अगर रह ना सको पास तो
उन्हें रखना अपने दिल में
मेरे बच्चे!
तुम जब बड़े हो जाना
तो उड़ जाना आसमां में
नाप आना उसकी ऊंचाई को
मगर अपनी थकान मिटाने
उस बरगद पर लौट आना
जिस पर कभी खेले थे
साथ उसके पले और बढ़े थे
कभी बोझिल हो जाएं आंखें
तो उन कंधों को ढूंढ लेना
जिस पर हमेशा मेरे बच्चे! तुम
अपना सर रख सोया करते थे
ऊंची ऊंची इमारतों के बीच
बलखाते चौड़े सड़कों से दूर
अपनी चमचमाती गाड़ी से कभी
उन पगडंडियों पर भी घूम आना
जहां नंगे पांव चला करते थे
उस मिट्टी को चूम आना
जहां तुम्हारे पुरखे रहा करते थे
जहां दूर तलक फैले
शांत चित्त पड़े वो खेत
जो कभी लहलहाया करते थे
तुम्हें देखे खुशी से लहराएंगे
कभी उनके पास बैठ जाना
सुन लेना उनकी धड़कनों को
जहां आज भी रहते होंगे अपने
उनके फूलों को भी सूंघ लेना
उन्हें महसूस करना
वर्षों से खाली पड़े तुम्हारे पेट
यूं ही झट से भर जाएंगे
आज शायद मेरी बात तुम
ना समझ पाओ
लेकिन एक दिन तुम
जरूर समझ जाओगे
मेरे बच्चे! जानते हो
मैं भी वहां पहुंचा था
जहां आज तुम पहुंचे हो
वहां डरे हुए लोग रहते हैं
मैं भी डर गया था शहर से
जानते हो क्यों? क्योंकि
उसकी सारी सीढ़ियां
जिस ऊंचाई पर जाती हैं ना
वहां घुप्प अंधेरा है
अपनेपन का कोई नाम नहीं
वहां सभी अकेले हैं
अकेलापन है, सूनापन है
सच कहूं तो मेरे बच्चे !
वहां कोई रहता ही नहीं है
मेरे बच्चे!
जब तुम बड़े हो जाना, तो
याद कर लेना मेरी ये बात
जो मेरी नहीं है
ये मेरे पुरखों की है
ये तुम्हारे पुरखों की जागीर है