May 2, 2024

मैंने कहा, जाती हुई उम्र से…

‘जरा ठहरो ना’

उसने कहा, मैं उम्र हूं!

ठहरती नहीं,

अगर मिलना चाहते हो,

तो मेरे साथ चलो।

कुछ बातें करनी हो,

तो मेरे साथ चलो।

 

मैंने कहा, कैसे चलूं?

अभी तो मेरे साथ,

बचपने का हाथ है।

 

वह चुपचाप आगे,

बहुत आगे निकल गई।

मैं आज भी

उसे जाते हुए देखता,

वहीं खड़ा हूं।

 

विद्यावाचस्पति अश्विनी राय ‘अरुण’

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