नफरत से देखने लगे
अथवा छूत मान लिए हैं।
घर परिवार वाले अथवा
गांव जवार वाले।
मौके की नजाकत देखे बगैर
हालत का जायजा लिए बगैर
पति की हत्यारिन मान लिया,
पापिन, चांडालीन तक कह कर
मौके का फायदा भी उठा लिया।
उसका कोख भी उजड़ा है
इस हृदय विदार दुख में लोगों ने
बाझिन पापिन कहकर साथ दिया है।
इस महामारी में
छीन गए कितनों के,
घर-बार खेत-बधार।
ऐसा मौका कहां मिलेगा,
खाली न जाने पाए इस बार।
उसे डाकिनी कहा गया
पिशाचिनी कहा गया
सारे कोरोना का ठीकरा
उस अकेले निर्बला के
सर पर आज फोड़ा गया।
आज जाके पता चला,
सूखा, महामारी, अकाल आदि
सारे विध्वंस, सारी अराजकता
यही राकसी, आदिमखोर बाघिन
लाती रही है।
मैंने देखा है,
अरे मैंने भी देखा है।
आप ही नहीं काका
हम सबने भी देखा है।
गांव के सीवान पर
इस कोरोना से पहले भी
हैजा, मलेरिया, मरण
आदि जो विपदा आए हैं
टोने-टोटके के खूनी पंजों के
निशान अक्सर इसी के पाए गए हैं।
अब देखना क्या है,
और सुनना क्या है।
भीड़ से उठती आवाज में,
पंचों के न्याय पर,
काले बादल जम गए।
विचारों पर ताले लग गए।
मौके को ढूंढती आंखों के अलावा
अब कई शिकारी कुत्ते-सी आंखें
उसे फाड़ खाना चाहती हैं।
अब तक जो
गांव की बेटी थी
बहन थी, बहू थी
किसी की मां भी थी
सन्देह के कंटीली झाड़ियों में
घसीटी जाने लगी
लाठियों से पीटी जाने लगी
नई पहचान के साथ
लहूलुहान पड़ी वह
सिर्फ डायन कहलाने लगी थी।