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कबीर की वाणी…

गोवर्धन कृष्ण जी उठाया,
द्रोणागिरि हनुमंत।
शेष नाग सब सृष्टी उठाई,
इनमें को भगवंत।।

यह कबीर साहब की वाणी है, जिसमे सबसे पहले गोवर्धन का नाम आया है। और आज गोवर्धन पूजा भी है, वैसे तो भगवान श्री कृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को उठाने की कथा को हर कोई जानता है, फिर भी आइए हम आज की धार्मिक महत्ता पर चर्चा करते हैं…

कथा…

एक बार की बात है, देवराज इन्द्र को अभिमान हो गया था। इन्द्र का अभिमान चूर करने हेतु भगवान श्री कृष्ण जो स्वयं लीलाधारी श्री हरि विष्णु के अवतार हैं, ने एक लीला रची। प्रभु की इस लीला में यूं हुआ कि एक दिन उन्होंने देखा के सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे हैं और किसी पूजा की तैयारी में जुटे हुए हैं। श्री कृष्ण ने बड़े भोलेपन से मईया यशोदा से प्रश्न किया, “मईया ये आप लोग किनकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं” कृष्ण की बातें सुनकर मैया बोलीं, ‘लल्ला हम देवराज इन्द्र की पूजा के लिए अन्नकूट की तैयारी कर रहे हैं।’ मैया के ऐसा कहने पर श्री कृष्ण बोले, “मैया हम इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं?” मैईया ने कहा, ‘वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है उनसे हमारी गायों को चारा मिलता है।’ भगवान श्री कृष्ण बोले, “हमें तो गोर्वधन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गाये वहीं चरती हैं, इस दृष्टि से गोर्वधन पर्वत ही पूजनीय है और इन्द्र तो कभी दर्शन भी नहीं देते व पूजा न करने पर क्रोधित भी होते हैं अत: ऐसे अहंकारी की पूजा नहीं करनी चाहिए।”

लीलाधारी की लीला और माया से सभी ने इन्द्र के बदले गोवर्घन पर्वत की पूजा की। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। प्रलय के समान वर्षा देखकर सभी बृजवासी भगवान श्री कृष्ण को कोसने लगे कि, सब इनका कहा मानने से हुआ है। तब मुरलीधर ने मुरली कमर में डाली और अपनी कनिष्ठा उंगली पर पूरा गोवर्घन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया। इन्द्र श्रीकृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी। इन्द्र का मान मर्दन के लिए तब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इन्द्र लगातार सात दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई आम मनुष्य नहीं हो सकता अत: वे ब्रह्माजी के पास पहुंचे और सब वृतान्त कह सुनाया। ब्रह्माजी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस श्रीकृष्ण की बात कर रहे हैं, वह भगवान श्रीविष्णु के साक्षात अंशावतार हैं और पूर्ण पुरूषोत्तम नारायण हैं। ब्रह्माजी के मुंख से यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं और कृपालु भी इसलिए मेरी भूल क्षमा करें। इसके पश्चात देवराज इन्द्र ने मुरलीधर की पूजा कर उन्हें भोग लगाया।

इस पौराणिक घटना के बाद से ही गोवर्घन पूजा की जाने लगी। बृजवासी इस दिन गोवर्घन पर्वत की पूजा करते हैं। गाय बैल को इस दिन स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है व उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है। गाय और बैलों को गुड़ और चावल मिलाकर खिलाया जाता है।

महत्व…

गोवर्धन पूजा दीपावली की अगले दिन की जाती है। इसे अन्नकूट भी कहा जाता है। इस त्यौहार का भारतीय लोकजीवन में काफी महत्व है। इस पर्व में प्रकृति के साथ मानव का सीधा सम्बन्ध दिखाई देता है। इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है। गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उसी प्रकार पवित्र होती है जैसे नदियों में गंगा। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। इनका बछड़ा खेतों में अनाज उगाता है। इस तरह गौ सम्पूर्ण मानव जाती के लिए पूजनीय और आदरणीय है। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है।

गोवर्धन पर्वत…

गोवर्धन पर्वत मथुरा (उत्तरप्रदेश) से लगभग २३ किलोमीटर की दूरी पर, शहर मथुरा और देग के बीच सड़क संपर्क पर है। यहां हर वर्ष तीर्थ यात्रियों का तांता लगा रहता है। गोवर्धन में सबसे महत्वपूर्ण दिन में से एक गुरु पूर्णिमा (जिसे “मुड़िया पूनो” भी कहा जाता है)। रोशनी पर्व के अगले दिन यानी दिवाली के अगले दिन भक्त गोवर्धन की पारिक्रम करने के लिए आते हैं। यह परिक्रमा २१ किलोमीटर लंबी होती है।

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