भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के शुरुवाती क्रांतिकारी और ग़दर पार्टी के बड़े नेता श्री अब्दुल हाफ़िज़ मोहम्मद बरकातुल्ला का जन्म 7 जुलाई, 1854 को मध्यप्रदेश के भोपाल में हुआ था। अमेरिका, यूरोप, जर्मनी, अफगानिस्तान, जापान और मलाया में भारतीयों के मध्य उन्होंने अँगरेज़ साम्राजयवाद के विरुद्ध बगावत की चिंगारी भरी और विश्व के बड़े नेताओं से हिंदुस्तान में आज़ादी की लड़ाई के लिए मदद मांगी। भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रमुख समाचार पत्रों में अग्निमय उदबोधन और क्रांतिकारी लेखन के साथ वे जीवन पर्यन्त लगे रहे परंतु भारत को स्वतंत्र देखने के लिए जीवित नहीं रहे। वर्ष? 1988 में, भोपाल विश्वविद्यालय का नाम बदलकर उन्हीं के नाम पर बरकतुल्ला विश्वविद्यालय रखा गया था।
मौलाना बरकतुल्ला ने भोपाल के सुलेमानिया स्कूल से अरबी, फ़ारसी की माध्यमिक और उच्च शिक्षा प्राप्त की थी। मौलाना ने यहाँ से हाई स्कूल तक की अंग्रेज़ी शिक्षा भी हासिल की। शिक्षा के दौरान ही उसे उच्च शिक्षित अनुभवी मौलवियों, विद्वानों को मिलने और उनके विचारों को जानने का मौका मिला। शिक्षा ख़त्म करने के बाद वे उसी स्कूल में अध्यापक नियुक्त हो गए ।
यही काम करते हुए वह शेख़ जमालुद्दीन अफ़्ग़ानी से काफ़ी प्रभावित हुए। शेख़ साहब सारी दुनिया के मुसलमानों में एकता और भाईचारों के लिए दुनिया का दौरा कर रहे थे। मौलवी बरकतुल्ला के माँ-बाप की इस दौरान मौत हो गई। अकेली बहन का विवाह हो चुका था। अब मौलाना ख़ानदान में एकदम अकेले रह गए। अतः उन्होने भोपाल छोड़ दिया और बंबई चले गए। वह पहले खंडाला और फिर बंबई में ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही साथ अपनी अंग्रेज़ी की पढ़ाई भी जारी रखी। 4 साल में अंग्रेज़ी की उच्च शिक्षा हासिल कर ली थी और 1887 में वे आगे की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड चले गए।
1915 में तुर्की और जर्मन की सहायता से अफ़ग़ानिस्तान में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ चल रही ग़दर लहर में भाग लेने के वास्ते मौलाना बरकतउल्ला अमेरिका से काबुल पहुँचे। 1915 में उन्होंने मौलाना उबैदुल्ला सिंधी और राजा महेन्द्र प्रताप सिंह से मिल कर प्रवास में भारत की पहली निर्वासित (आरज़ी) सरकार का एलान कर दिया। राजा महेन्द्र प्रताप सिंह इस के पहले राष्ट्रपति थे और मौलाना बरकतुल्ला इस के पहले प्रधान मंत्री।
ज्यादातर लोग जानते है की ब्रिटिश शासन के दौर में बनी पहली हिन्दुस्तानी सरकार आज़ाद हिन्द फ़ौज की सरकार थी। लेकिन सच्चाई यह है की पहली हिन्दुस्तानी सरकार 1915 में अफगानिस्तान में बनी हिन्दुस्तान की अस्थाई सरकार थी। राजा महेन्द्र प्रताप इसके राष्ट्रपति और मौलाना बरकतुल्लाह इसके प्रधानमन्त्री थे। इस तरह बरकतुल्लाह साहब को हिन्दुस्तान का पहला प्रधानमन्त्री बनने का गौरव प्राप्त है।उनका जीवन शुरुआत से ही संघर्षो का जीवन रहा है। उनकी दिलचस्पी इस्लाम के धर्मवादी रुझानो से गदर पार्टी के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी एवं धर्म निरपेक्षी रुझानो की तरफ बढ़ती रही। उन्होंने इस्लामी जगत के स्कालर के रूप में अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्धि हासिल की। कई भाषाओं के विद्वान् के रूप में मौलाना बरकतउल्लाह ने राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी धार्मिक या किसी भी भाषाई संस्थान के उच्च पद पर पहुचने में कही कोई अडचन नही थी । वे लिवरपूल व टोकियो यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में सालो साल काम भी करते रहे थे। लेकिन अन्त में उन्होंने वह सब त्याग कर राष्ट्र के स्वतंत्रता के लिए प्रवासी क्रांतिकारी का जीवन अपनाया। गदर पार्टी के निर्माण में और उसे आगे बढाने में भरपूर योगदान दिया। बाद में अफगानिस्तान में देश की पहली अस्थाई सरकार बनाने में अग्रणी भूमिका निभाई। ब्रिटिश दासता और उसके शोषण व अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध मौलवी बरकतुल्लाह के विचार एवं व्यवहार महत्वपूर्ण हैं।
काबुल में स्थापित इस सरकार का मक़सद उत्तर से हमला कर भारत से अंग्रेज़ों को भगाना था मगर इस बीच प्रथम विश्व युद्ध छिड़ गया और प्लान कामयाब न हो सका। मगर ग़दर पार्टी की जलाई चिंगारी ने ही इतने क्रांतिकारी पूरी दुनिया में पैदा किये कि आगे राष्ट्रीय आंदोलन में मलाया से ले कर कनाडा तक हर जगह निर्वासित भारतीय में देशभक्ति की भावना जाग गयी।
27 सितम्बर 1927 को मौलाना के जीवन का चमकता सूरज हमेशा के लिए विलीन हो गया। उन्हें अमेरिका के मारवस्बिली क़ब्रिस्तान में दफना दिया गया। उनका अंतिम संस्कार रहमत अली. डॉ० सैयद हसन, डॉ० औरगशाह और राजा महेन्द्र प्रताप द्वारा मिलकर किया गया। मृत्यु से पहले मौलाना ने अपने साथियो से ये शब्द कहे थे — “मैं आजीवन हिन्दुस्तान की आज़ादी के लिए सक्रिय रहा। यह मेरे लिए ख़ुशी की बात हैं कि मेरा जीवन मेरे देश की बेहतरी के लिए इस्तेमाल हो पाया। अफ़सोस है कि हमारी कोशिशों का हमारे जीवन में कोई फल नहीं निकला। लेकिन उसी के साथ यह ख़ुशी भी है कि अब हजारो कि तादात में नौजवान देश की आज़ादी के लिए आगे आ रहे हैं, जो ईमानदार और साहसी हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ अपने देश का भविष्य उनके हाथो में छोड़ सकता हूँ।