November 24, 2024

अनंत लाल कामत
जन्म – १९ जनवरी १९११
स्थान – बिहार के घोघरडीहा प्रखंड के गरबा नामक गांव के हरिनंदन कामत व खजनी देवी के यहां हुआ था। अनंत लाल कामत का युवा अवस्था से ही शिक्षा के साथ-साथ देशभक्ति के प्रति झुकाव था। घोघरडीहा प्रखंड के प्राथमिक विद्यालय, इनरबा एवं जागेश्वर स्थान, हुलासपट्टी स्थित विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद अनंत लाल कामत ने मध्य विद्यालय निर्मली से वर्ष १९२७ में मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी बीच देश में आजादी की लड़ाई की धमक सुनाई पडने लगी थी। उन्होंने वर्ष १९३०में महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए नमक सत्याग्रह आंदोलन, वर्ष १९३२ में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार आंदोलन में शामिल होने के साथ वर्ष १९३४ के जनवरी में प्रलयंकारी बाढ़ और भूकंप में राजेन्द्र प्रसाद के साथ मिलकर भूकंप राहत में अहम भूमिका अदा किया। वर्ष १९३५ में वे जिला कांग्रेस कमेटी के सदस्य के रुप में चुने गए। इस पद पर १९४२ तक बने रहे। इसी बीच में राष्ट्रीय कांग्रेस का रामगढ़ में हुए राष्ट्रीय अधिवेशन में जिला प्रतिनिधि के रुप में शामिल हुए। ०७ अगस्त १९४२ में महात्मा गांधी की अध्यक्षता में मुंबई में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पारित प्रस्ताव अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन की जानकारी मिलते ही वे इस आंदोलन में कूद पड़े।

झंझारपुर में छात्रों व आमजनों को संगठित कर झंझारपुर थाना पर उन्होंने तिरंगा भी फहराया। लोगों में देशभक्ति की भावना जागृत करते हुए १७ अगस्त १९४२ को फुलपरास थाना एवं अवर निबंधन कार्यालय के कागजात को नष्ट कर दिया। इसके बाद अनंत लाल कामत ने अपने साथियों के संग मिलकर रेल की पटरी और टेलीफोन सेवा को भी क्षति पहुंचाया। जिससे अनंत लाल कामत समेत इनके साथियों के विरूद्ध मुकदमा चलाया गया। अनंत लाल कामत आजादी का अलख जगाते हुए नौ माह तक नेपाल में शरण लिया। इसके बाद वापस घर लौटने पर उन्हें अंग्रेज पुलिस गिरफ्तार कर लिया। सात माह बाद १९४३ में जमानत पर रिहा होकर फिर से स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय हो गए। २६ जनवरी १९४५ को जागेश्वर स्थान में अपने सहयोगियों के संग तिरंगा फहराने के जुर्म में गिरफ्तार कर लिए गए। १९४८ में वे जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। यह पार्टी आगे चलकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बना। इसके बाद वे फुलपरास विधान सभा क्षेत्र से १९६७ में इस पार्टी से विधान सभा चुनाव में भी उतरे। लेकिन चुनाव हार गए। १९५२ में आचार्य विनोवा भावे के भूदान-आंदोलन में भी सक्रिय रहे। वे सांगी पंचायत के निर्विरोध सरपंच भी चुने जा चुके हैं। कैवर्त समुदाय सहित समाज के सभी वर्गों में नई सोच के उद्देश्य से निरंतर वे समाज के विकास में लगे रहे।

About Author

Leave a Reply