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भवानी प्रसाद मिश्र, शकुन्तला माथुर, हरिनारायण व्यास, शमशेर बहादुर सिंह, नरेश मेहता, रघुवीर सहाय एवं धर्मवीर भारती की सम्मलित संकलन को दूसरा सप्तक कहा जाता है। जिसका संपादन अज्ञेय द्वारा १९४९ में तथा प्रकाशन १९५१ में भारतीय ज्ञानपीठ से हुआ। दूसरा सप्तक के कवियों ने समसामयिक काव्य की प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व किया और उनका प्रभाव अपने समय के काव्य पर पड़ा। आज भी अनेक काव्यप्रेमियों में इस संग्रह की कविताएँ आधुनिक हिन्दी कविता के उस रचनाशील दौर की स्मृतियाँ जगाती हैं। भाषा और अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है की, दोनों के एक साथ प्रयोग कर सकना ही कवि-कर्म को सार्थक बनाता है। इसलिए निस्संदेह ही ये कविताएँ अपने आप में पूर्ण तृप्तिकर हैं। साथ ही, इस संग्रह की विचारोत्तेजक और विवादास्पद भूमिका को पढ़ना भी अपने में एक ताजा बौद्धिक अनुभव होगा।

अब आते हैं मुख्य मुद्दे पर…दूसरा सप्तक के कवियों में से एक कवि हैं भवानी प्रसाद मिश्र, जिनका जन्म २९ मार्च, १९१३ में मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिला के टिगरिया नामक गाँव में हुआ था। वे हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। गांंधी-दर्शन का प्रभाव तथा उसकी झलक उनकी कविताओं में साफ़ देखी जा सकती है। महात्मा गांधी के विचारों के अनुसार शिक्षा देने के विचार से उन्होंने एक स्कूल खोलकर अध्यापन कार्य शुरू किया और उस स्कूल को चलाते समय ही वे गिरफ्तार हो गए। छूटने के बाद महिलाश्रम वर्धा में शिक्षक बने। १९३२-३३ में वे माखनलाल चतुर्वेदी के सम्पर्क में आये। चतुर्वेदी जी आग्रहपूर्वक कर्मवीर में उनकी कविताएँ प्रकाशित करते रहे। हंस में भी उनकी काफी कविताएँ छपीं उसके बाद अज्ञेय जी ने ‘दूसरा सप्तक’ में उन्हें प्रकाशित किया। ‘दूसरा सप्तक’ के बाद प्रकाशन क्रम ज्यादा नियमित होता गया। उन्होंने चित्रपट के लिये संवाद लिखे और मद्रास के ए०बी०एम० में संवाद निर्देशन भी किया। मद्रास व मुम्बई में आकाशवाणी के प्रोड्यूसर होकर गये। तत्पश्चात आकाशवाणी दिल्ली में भी काम किया।

एक दिन वे दिल्ली से नरसिंहपुर (मध्यप्रदेश) विवाह समारोह में गये थे, अचानक वहीं वे बीमार हो गये और अपने सभी सगे सम्बन्धियों व परिवार जनों के मध्य उन्होंने अन्तिम विदाई ली। उनका प्रथम संग्रह ‘गीत-फ़रोश’ अपनी नई शैली, नई उद्भावनाओं और नये पाठ-प्रवाह के कारण अत्यंत लोकप्रिय हुआ था। प्यार से लोग उन्हें भवानी भाई कहकर सम्बोधित किया करते थे।

भवानी भाई की प्रमुख कृतियाँ…

कविता संग्रह :- गीत फरोश, चकित है दुख, गान्धी पंचशती, बुनी हुई रस्सी, खुशबू के शिलालेख, त्रिकाल सन्ध्या, व्यक्तिगत, परिवर्तन जिए, तुम आते हो, इदम् न मम एवं शरीर।

उनकी कविताएँ :- फसलें और फूल, मानसरोवर दिन, सम्प्रति, अँधेरी कविताएँ, तूस की आग, कालजयी, अनाम, नीली रेखा तक और सन्नाटा।

बाल कविताएँ :- तुकों के खेल।

संस्मरण :- जिन्होंने मुझे रचा।

निबन्ध संग्रह :- कुछ नीति कुछ राजनीति, आदि।

उनकी जिंदगी बड़ी ऊंची नीची रही मगर उन्होंने स्वयं को कभी भी निराशा के गर्त में डूबने नहीं दिया। जैसे सात बार वे मौत से लड़े वैसे ही आजादी के लिए लड़े और फिर आजादी के बाद तानाशाही से भी उनका सामना हुआ। आपातकाल के दौरान नियम पूर्वक सुबह-दोपहर-शाम तीनों वेलाओं में उन्होंने कवितायें लिखी थीं जो बाद में त्रिकाल सन्ध्या नामक पुस्तक में प्रकाशित भी हुईं। भवानी भाई को उनकी कृति बुनी हुई रस्सी पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। १९८१-८२ में उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा १९८३ में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।

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