Giani-Gurmukh-Singh-Musafir

ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर भारतीय राजनीतिज्ञ और पंजाबी भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। उनके द्वारा रचित एक कहानी संग्रह ‘उरवरपार’ के लिये उन्हें मरणोपरान्त सन् १९७८ में ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था। ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर का सम्बंध भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से था। वह १ नवंबर, 1966 से ८ मार्च, १९६७ तक पंजाब के मुख्यमंत्री भी रहे।

 

परिचय…

कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल के प्रमुख नेता ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर का जन्म १५ जनवरी, १८९९ ई. को ज़िला कैम्पबैलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने ४ वर्ष तक शिक्षक का काम किया, तभी से ‘ज्ञानी’ कहलाने लगे थे। १९१९ के जलियाँवाला बाग़ हत्याकांड का उन पर बड़ा प्रभाव पड़ा और वे ब्रिटिश साम्राज्य के विरोधी बन गए।

 

क्रांतिकारी गतिविधियाँ…

उन्हीं दिनों गुरुद्वारों का प्रबंध सिक्ख समुदाय को सौंपने और उसमें सुधार के लिए पंजाब में व्यापक आंदोलन चला था। गुरमुख सिंह ने अपनी पंजाबी भाषा की कविताओं से उसमें और जान डाल दी। उन्होंने इसके लिए अध्यापन कार्य भी छोड़ दिया। बाद में अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें गिरप्तार कर लिया।

 

गुरुद्वारा आंदोलन के नेता…

अब ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर गुरुद्बारा आंदोलन के प्रमुख नेता थे। १९३० में वे अकाल तख्त के जत्थेदार और बाद में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के मंत्री बने। उनका जवाहरलाल नेहरू से निकट का परिचय था और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल यात्राएँ कीं।

 

दृढ़ इच्छा शक्ति…

भारत छोड़ो आंदोलन में वे जिस समय जेल में बंद थे, उनके पिता, एक पुत्र और एक पुत्री की मृत्यु हो गई। निजी संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने ‘पैरोल’ पर जेल से बाहर आना स्वीकार नहीं किया। यह सब उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति का ही प्रमाण था।

 

पंजाब के मुख्यमंत्री…

स्वतंत्रता के बाद ज्ञानी गुरमुख सिंह मुसाफ़िर कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य चुने गए। वे संविधान सभा के सदस्य थे और १९५२ में लोकसभा के सदस्य चुने गए। बाद में वे पंजाब की विधान परिषद के लिए निर्वाचित हुए और पंजाब के मुख्यमंत्री बने। ज्ञानी जी के मुख्यमंत्रित्व काल में पंजाब की चतुर्दिक उन्नति हुई।

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