November 21, 2024

ए भाई, ज़रा देख के चलो,
आगे ही नहीं पीछे भी
दायें ही नहीं बायें भी,
ऊपर ही नहीं नीचे भी – २
ए भाई…

तू जहाँ आया है,
वो तेरा – घर नहीं, गाँव नहीं
गली नहीं, कूचा नहीं, रस्ता नहीं, बस्ती नहीं, दुनिया है।

और प्यारे, दुनिया!
यह एक सरकस है और इस सरकस में…
बड़े को भी, छोटे को भी, खरे को भी, खोटे को भी, मोटे को भी, पतले को भी…
नीचे से ऊपर को, ऊपर से नीचे को,
बराबर आना-जाना पड़ता है।

यह गीत मेरा नाम जोकर नामक चित्रपट का है। इसे गया था मन्ना डे ने, संगीतकार थे शंकर – जयकिशन और इस गीत को लिखा था नीरज (गोपालदास सक्सेना) ने। जिन्हें साहित्य एवं चित्रपट की दुनिया में गोपालदास नीरज के नाम से जाना जाता है। आइए आज हम इनके बारे में बात करते हैं…

परिचय…

गोपालदास नीरज का जन्म ४ जनवरी, १९२५ को उत्तरप्रदेश के इटावा जिला अंतर्गत महेवा के निकट पुरावली गाँव में बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना के यहाँ हुआ था। गोपालदास जब मात्र ६ वर्ष के थे तो उनके पिता जी का देहांत हो गया। मगर समय कहां रुकता है वो चलता रहा और समय आया वर्ष १९४२ का जब वे एटा से हाई स्कूल परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण कर इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट का काम करने लगे, उसके बाद सिनेमाघर के अंदर एक दुकान पर नौकरी की। मगर वो काम छूट गया और वे बेकार हो गए। लंबी बेकारी के बाद दिल्ली जाकर सफाई विभाग में टाइपिस्ट की नौकरी करने लगे। वहाँ से भी नौकरी छूट गई तो कानपुर के डीएवी कॉलेज में क्लर्की करने लगे। उसके बाद बाल्कट ब्रदर्स नाम की एक प्राइवेट कम्पनी में पाँच वर्ष तक टाइपिस्ट का काम किया। नौकरी करने के साथ प्राइवेट परीक्षाएँ देकर वर्ष १९४९ में इण्टरमीडिएट, वर्ष १९५१ में बीए और वर्ष १९५३ में प्रथम श्रेणी में हिन्दी साहित्य से एमए किया।

मेरठ काॅलेज में हिन्दी प्रवक्ता के पद पर कुछ समय तक अध्यापन कार्य भी किया किन्तु कॉलेज प्रशासन द्वारा उन पर कक्षाएँ न लेने व रोमांस करने के आरोप लगाये गये जिससे कुपित होकर नीरज ने स्वयं ही नौकरी से त्यागपत्र दे दिया।

इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में,
लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में।
न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर,
ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में॥

उसके बाद वे अलीगढ़ के धर्म समाज कॉलेज में हिन्दी विभाग के प्राध्यापक नियुक्त हो गये और मैरिस रोड जनकपुरी अलीगढ़ में स्थायी आवास बनाकर रहने लगे।

कवि एवं साहित्यिक सफर…

जीवन की भागादौड़ी के मध्य में नीरज कवि सम्मेलनों में भी भाग लेने लगे थे अतः बेहद लोकप्रियता के चलते बम्बई के फिल्म जगत ने गीतकार के रूप में नई उमर की नई फसल के गीत लिखने का निमन्त्रण दिया जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। पहली ही फ़िल्म में उनके लिखे कुछ गीत जैसे; कारवाँ गुजर गया गुबार देखते रहे और देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा बेहद लोकप्रिय हुए जिसका परिणाम यह हुआ कि वे बम्बई में रहकर फ़िल्मों के लिये गीत लिखने लगे। फिल्मों में गीत लेखन का सिलसिला मेरा नाम जोकर, शर्मीली और प्रेम पुजारी जैसी अनेक चर्चित फिल्मों में कई वर्षों तक जारी रहा। किन्तु बम्बई की ज़िन्दगी से भी उनका मन बहुत जल्द उचट गया और वे फिल्म नगरी को अलविदा कहकर फिर अलीगढ़ वापस लौट आये।

बस यही अपराध मैं
हर बार करता हूँ,
आदमी हूँ,
आदमी से प्यार करता हूँ।
बस यही अपराध मैं
हर बार करता हूँ,
बस यहीं अपराध मैं
हर बार करता हूँ।।

हिन्दी साहित्यकार, शिक्षक, कवि सम्मेलनों के मंचों पर काव्य वाचक एवं फ़िल्मों के गीत लेखक नीरज पहले व्यक्ति थे जिन्हें शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में भारत सरकार ने दो-दो बार सम्मानित किया, पहले पद्म श्री से उसके बाद पद्म भूषण से। यही नहीं, फ़िल्मों में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्हें लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला, जो इनमें से कुछ इस प्रकार के हैं…

वर्ष १९९१…
विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार एवं
पद्म श्री सम्मान, भारत सरकार।

वर्ष १९९४…
यश भारती एवं एक लाख रुपये का पुरस्कार, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान, लखनऊ।

वर्ष २००७…
पद्म भूषण सम्मान, भारत सरकार।

इसके अलावा गोपालदास नीरज को फ़िल्म जगत में सर्वश्रेष्ठ गीत लेखन के लिये उन्नीस सौ सत्तर के दशक में लगातार तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया..

वर्ष १९७०… काल का पहिया घूमे रे भइया! (फ़िल्म: चंदा और बिजली)

वर्ष १९७१… बस यही अपराध मैं हर बार करता हूँ (फ़िल्म: पहचान)

वर्ष १९७२… ए भाई! ज़रा देख के चलो (फ़िल्म: मेरा नाम जोकर)

हिन्दी साहित्यकार सन्दर्भ कोश के अनुसार नीरज जी की क्रमानुसार प्रकाशित कृतियाँ इस प्रकार हैं…

संघर्ष (१९४४), अन्तर्ध्वनि (१९४६), विभावरी (१९४८), प्राणगीत (१९५१), दर्द दिया है (१९५६), बादर बरस गयो (१९५७), मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती (१९५८), गीत भी अगीत भी (१९५९), आसावरी, नदी किनारे, लहर पुकारे (१९६३), कारवाँ गुजर गया (१९६४), फिर दीप जलेगा (१९७०), तुम्हारे लिये (१९७२), नीरज की गीतिकाएँ (१९८७) आदि।

और अंत में…

काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इन्सान चले,
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले।

राम कृष्ण हरि …

जनक की बेटी अवध की रानी
सीता भटके बन बन में,
राह अकेली रात अन्धेरी
मगर रतन हैं दामन में,
साथ न जिस के चलता कोई
उस के साथ भगवान चले।

काल का पहिया घूमे भैया
लाख तरह इन्सान चले,
ले के चले बारात कभी तो
कभी बिना सामान चले।

पद्म भूषण से सम्मानित कवि, गीतकार गोपालदास ‘नीरज’ दिल्ली के एम्स से १९ जुलाई, २०१८ की शाम लगभग ८ बजे भगवान से मिलने को चल दिए।

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