आज हम बात करने वाले हैं महान् आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष गुरु हरराय के बारे में, वे सिक्खों के सातवें गुरु थे। वे पितामह, महान् योद्धा गुरु हरगोविंद सिंह के बाद ३ मार्च, १६४४ को गुरु नियुक्त होकर ६ अक्टूबर, १६६१ तक इस पद पर रहे। वे अपने पितामह गुरु हरगोविंद सिंह जी के विपरीत शांति के समर्थक थे, जो सही मायनों में उन दिनों मुग़ल उत्पीड़न का विरोध करने के लिए उपयुक्त नहीं था। अब विस्तार से…
परिचय…
गुरु हरराय का जन्म १६ जनवरी, १६३० को पंजाब के रूपनगर स्थित कीरतपुर साहिब में हुआ था। गुरू हरराय जी के पिता का नाम बाबा गुरदित्ता जी एवं माता जी का नाम निहाल कौर जी था। गुरू हरराय साहिब जी का विवाह माता किशन कौर जी के साथ हर सूदी ३, सम्वत १६९७ को हुआ था। वे उत्तरप्रदेश अंतर्गत अनूपशहर (बुलन्दशहर) के श्री दयाराम जी की पुत्री थीं। गुरू हरराय साहिब जी के दो पुत्र थे श्री रामराय जी और श्री हरकिशन साहिब जी (गुरू) थे। गुरु हरराय जी एक महान् आध्यात्मिक व राष्ट्रवादी महापुरुष थे। गुरु हरगोविन्द साहिब जी ने ज्योति जोत समाने से पहले, अपने पोते हरराय जी को १४ वर्ष की छोटी आयु में ही ३ मार्च, १६४४ को “सप्तम नानक” के रूप में स्थापित किया।
गुरु हरराय ने अपना अधिकांश समय प्रशासनिक व युद्ध संबधी ज़िम्मेदारियों के बजाय आध्यात्मिक कार्यों में लगाया और उन्हें राजनीतिक शक्ति पर नियन्त्रण के बारे में कम जानकारी थी। इससे सिक्खों की धर्मप्रचारक गतिविधियों में कमी आई और गुरु हरराय के सिक्ख जीवन की मुख्यधारा से लगातार कटे रहने के कारण गुरु से उत्साह पाने की आशा रखने वाला समुदाय कमज़ोर हो गया। अत: गुरु हरराय के ख़िलाफ़ गंभीर अंदरूनी विरोध पैदा होने लगा।
राजनीतिक भूल…
मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब के भाई दारा शिकोह की विद्रोह में मदद करके गुरु हरराय ने पहली बड़ी राजनीतिक ग़लती की थी। दारा शिकोह संस्कृत भाषा के विद्वान् थे। दारा शिकोह को भारतीय जीवन दर्शन प्रभावित करने लगा था। हरराय का कहना था कि उन्होंने एक सच्चा सिक्ख होने के नाते सिर्फ़ एक ज़रूरतमंद व्यक्ति की मदद की है। जब औरंगज़ेब ने इस मामले पर सफ़ाई देने के लिए हरराय को बुलाया, तो हरराय ने अपने पुत्र राम राय को प्रतिनिधि बनाकर भेज दिया।
उत्तराधिकारी…
राम राय ने बादशाह औरंगज़ेब के दरबार में कई चमत्कार दिखाए, लेकिन बादशाह को प्रसन्न करके अपने पिता गुरु हरराय को क्षमा दिलाने के लिए राम राय को सिक्खों की धार्मिक पुस्तक आदि ग्रंथ की एक पंक्ति में फेरबदल करनी पड़ी थी। गुरु हरराय ने अपने पुत्र को इस ईशनिंदा के लिए कभी माफ़ नहीं किया और अपनी मृत्यु से पहले राम राय के बदले अपने दूसरे पाँच वर्षीय पुत्र हरिकिशन को अपना उत्तराधिकारी बना दिया। गुरु हरराय की मृत्यु ६ अक्टूबर, १६६१ को कीरतपुर साहिब में हुआ था।